महाराष्ट्र की संस्कृति और सभ्यता को उजागर गणेश पूजा की परंपरा करती है, जो कि कई दशकों से समाज को जोड़ने की कवायद सफलता से कर रही है। जाहिर-सी बात है कि गणेश पूजा गणेश पूजा भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्योहार है ,जो न केवल धार्मिक भावना से जुड़ा है, बल्कि इसमें गहरी सांस्कृतिक, कलात्मक और खेती से जुड़ीं भावनाएं भी हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
क्या है गणेश पूजा का सामाजिक महत्व

समाज में गणेश पूजा का महत्व केवल पूजा पाठ से नहीं जुड़ा है, बल्कि यह समाज को जोड़ने का भी काम करता है। इसकी वजह यह है कि गणेश का आगमन न केवल परिवार को साथ लाता है, बल्कि समाज को भी एक साथ लाकर खड़ा करता है। लोकल समुदाय, कॉलोनियां, गांव-शहर सब मिलकर गणपति की स्थापना करते हैं। इस दौरान ढोल-ताशा, लोकगीत, नृत्य और भजन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
पारंपरिक वेशभूषा और रंगों की सजावट

पारंपरिक वेशभूषा और रंगों की सजावट भी सांस्कृतिक एकता और सभ्यता को दिखाती है। इतना ही नहीं कई सारे पंडालों में सामाजिक मुद्दों की थीम बनाकर लोगों को जागरूक किया जाता है। इसमें एक कहानी सुनाई जाती है, जिसका मकसद केवल लोगों को पर्यावरण के प्रति या फिर समाज के लिहाज से जागरूक किया जाता है।
गणेश पूजा से जुड़ा कलात्मक महत्व

गणेश पूजा से कला की भी संस्कृति जुड़ी हुई है। मूर्ति निर्माण एक लोककला है। मिट्टी से गणपति की मूर्तियां बनाना एक पारंपरिक शिल्पकला है। मूर्तिकार पीढ़ियों से इस कला की विरासत को बढ़ा रहे हैं। मूर्तिकार गणेश की मूर्ति बनाते समय रचनात्मकता, रंगों का चयन, डिजाइन और पारंपरिक तत्वों का समावेश करते हैं। मूर्तिकार न केवल गणेश की मूर्ति में रंग भरते हैं, बल्कि उनको जीवित भी करते हैं, तभी तो गणेश की मूर्ति का चयन करते समय मूर्ति गणपति बप्पा मोरया बन जाती है। भगवान बन जाती हैं। दूसरी तरफ मंडपों की थीम डेकोरेशन, रंगोली, फूलों की सजावट और दीपों की रोशनी कला का विविध रूप गणपति उत्सव के दौरान लेकर आती है।
स्थानीय कला को बढ़ावा

गणेश पूजा साल में एक बार मूर्तिकारों के लिए एक व्यापक रोजगार का जरिया लेकर आती है। मिट्टी की गणेश की मूर्ति से लेकर मिट्टी के दीए तक से लेकर फूलों का व्यवसाय करने वाले किसानों के लिए भी एक बहुत बड़ा रास्ता कमाई के लेकर आता है। इस समय लोक कलाकारों, पेंटरों, मूर्तिकारों और हस्तकला विक्रेताओं को काम और पहचान मिलती है।
खेती और पर्यावरण से गणेश उत्सव का जुड़ाव

उल्लेखनीय है कि परंपरागत तौर से गणेश मूर्तियां नदी या खेत की मिट्टी से बनाई जाती है। इससे सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों और कारीगरों को आय मिलती है। इससे कहीं न कहीं पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ती है। लोग इको-फ्रेंडली गणपति, जैसे बीज गणेश या मिट्टी के गणेश को अपना रहे हैं। इससे विसर्जन पर्यावरण के लिए नया जीवन लेकर आता है। दूसरी तरफ गणपति के आगमन के साथ महाराष्ट्र में किसान खेती का सुखद आगमन भी मानते हैं।