बारिश के साथ कई सारे ऐसे त्योहारों का आगमन भी होता है, जो कि खेती की संस्कृति को जन्म देते हैं। भारत में बारिश से जुड़े त्योहार न सिर्फ खेती की संस्कृति की झलक दिखाते हैं बल्कि प्रकृति को धन्यवाद देने का भी एक तरीका है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। खेती के लिए मानसून पर निर्भर रहना स्वाभाविक है, क्योंकि प्रकृति की सुंदरता के सहारे ही खेती अपनी खूबसूरती की कहानी लिखती है। इसलिए बारिश के आगमन पर अच्छी फसल की कामना को लेकर कई क्षेत्रीय पर्व और परंपराएं मनाई जाती हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
आषाढ़ी एकादशी में खेती का महत्व

उल्लेखनीय है कि बारिश के आगमन के साथ आषाढ़ी एकादशी का भी आगमन होता है। महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में बारिश के आगमन के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है। यह त्योहार वारी यात्रा और विट्ठल भगवान की पूजा से जुड़ा होता है। वारी में किसान और भक्त पुणे से पंढरपुर तक यात्रा करते हैं, जो मानसून के आगमन के साथ शुरू होता है। यह वर्षा के स्वागत और कृषि कार्यों की शुरुआत का संकेत होता है। महाराष्ट्र में इस त्योहार का खास महत्व है। यह समय खेतों में बीज बोने और कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस दिन का धार्मिक महत्व किसानों के लिए एक शुभ संकेत होता है कि वे अपने कृषि कार्यों की शुरुआत करें। इस दिन विशेष पूजा और व्रतों के माध्यम से भगवान से अच्छी वर्षा और समृद्धि की कामना की जाती है, जिससे कृषि कार्यों में सफलता मिलती है। यह दिन किसानों के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि इसे कृषि कार्यों की शुरुआत और अच्छे मानसून की कामना का दिन भी माना जाता है। इस प्रकार, आषाढ़ी एकादशी भारतीय कृषि संस्कृति और समाज की समृद्धि में प्रमुख भूमिका निभाती है।
हरियाली तीज में बारिश और खेती का महत्व

उत्तर प्रदेश में खासतौर पर हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान प्रकृति को धन्यवाद दिया जाता है। यह पर्व हरियाली और प्रकृति की समृद्धि का प्रतीक है। महिलाएं झूला झूलती हैं, गीत गाती हैं और वर्षा ऋतु का आनंद लेती हैं। यह कृषि मौसम की समृद्धि और सौभाग्य की कामना से जुड़ा होता है।हरियाली तीज का समय मानसून के आगमन के साथ मेल खाता है, जो भारतीय कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मानसून की बारिश से खेतों में हरियाली छा जाती है और फसलों की बुवाई के लिए उपयुक्त वातावरण बनता है। किसान इस समय में अपनी फसलों की बुवाई करते हैं, जिससे आने वाले समय में अच्छी पैदावार की उम्मीद होती है।इस दिन महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं। हरे रंग के कपड़े भी पहनती हैं। यह पर्व एक तरह से प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार जाहिर करने का एक अवसर भी है। यह भी समझ सकती हैं कि हरियाली तीज महिलाओं के लिए एक सामाजिक उत्सव भी माना गया है। हरियाली तीज के अवसर पर महिलाएं विशेष रूप से शकरकंद, आलू, मक्का और अन्य कृषि उत्पादों की पूजा करती हैं। यह पूजा कृषि उत्पादों की समृद्धि और किसानों की मेहनत को सम्मानित करने का एक तरीका है।
नुआखाई त्योहार में खेती का महत्व

ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड में नुआ यानी कि नया और खाई यानी कि खाना की का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार नई फसल के स्वागत के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान किसान नई उपज के पहले अंश को भगवान को अर्पित करते हैं। यह वर्षा के बाद की पहली फसल से जुड़ा होता है। यह खास तौर पर ओडिशा का प्रमुख कृषि पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से किसानों के लिए प्रमुख है, क्योंकि यह नए धान की फसल की कटाई और उसकी पूजा का प्रतीक है। इस दौरान नई फसल का सेवन भोजन के तौर पर किया जाता है। इस दिन किसान अपनी पहली कटाई की फसल को देवी-देवताओं को अर्पित करते हैं और फिर उसे प्रसाद के रूप में खाते हैं। यह कृषि कार्य की सफलता और समृद्धि का प्रतीक है। इसे आप ओडिशा की कृषि संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। नुआखाई पर्व ओडिशा की कृषि संस्कृति, धार्मिक आस्थाओं और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह पर्व किसानों के कठिन परिश्रम, प्रकृति के साथ उनके संबंधों और सामुदायिक एकता को सम्मानित करता है।
ओणम में खेती का महत्व

ओणम त्योहार को केरल में कृषि पर्व के तौर पर मनाया जाता है। यह खासतौर पर फसल की कटाई का त्योहार है, जो कि बारिश के अंत में मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान खेती, इस समय धान की नई फसल की कटाई होती है, जिसे 'निरापुथारी' कहा जाता है। इस दिन को 'पुथारी' के रूप में मनाया जाता है, जिसमें नई फसल की पूजा की जाती है और उसका सेवन किया जाता है। इस दौरान कई तरह की सब्जियां भी बनाई जाती हैं। इसे केरल की कृषि संस्कृति का भी प्रतीक माना जाता है। यह पर्व किसानों के कठिन परिश्रम, नई फसल की सफलता और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर भी प्रदान करता है। ओणम के जरिए खेती की महत्ता को भी समझा जा सकता है।
सावन के त्यौहार में खेती का महत्व

उत्तर भारत में सावन का उत्सव मनाया जाता है। यह महीना बारिश की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है, जो कि किसानों के लिए नई आशाओं और समृद्धि का संकेत लेकर आता है। इस दौरान खरीफ फसलों के लिए जरूरी जलापूर्ति करती है, जिससे धान , मक्का, गन्ना, सोयाबीन और कपास जैसी फसलों की बुनाई हो पाती है।सावन के पहले भाग में जैसे ही मानसून की शुरुआत होती है, ठीक उसी दौरान बुवाई का काम शुरू हो जाता है। सावन के पहले सप्ताह में वन महोत्सव भी मनाया जाता है, जिसमें वृक्षारोपण की को लेकर खास तौर की पहल की जाती है। सावन के महीने में वर्षा आधारित कृषि को बढ़ावा दिया जाता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायक है। छत्तीसगढ़ में सावन के महीने में 'हरेली' पर्व मनाया जाता है, जिसमें किसान अपने कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं और अच्छे उत्पादन की कामना करते हैं। इसके अलावा राजस्थान, बिहार और नेपाल में भी सावन को लेकर त्योहार मनाया जाता है। इसे श्रावण मास का त्योहार कहा जाता है। इसमें महिलाएं सावन के गीत गाती हैं और उसका स्वागत करती हैं। यह त्योहार एक तरह से पारिवारिक समृद्धि और प्रकृति के उल्लास का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार एक तरह से कृषि आधारित जीवनशैली और संस्कृति का उत्सव भी है। यह पर्व कृषि कार्यों की सफलता, अच्छे मानसून और समृद्ध फसल के लिए आभार प्रकट का अवसर देती है। किसान इस दिन अपने परिवार और समुदाय के साथ मिलकर खुशी मनाते हैं।