दिवाली का आगमन रोशनी और खुशियां लेकर आता है। भारत विविधता से भरपूर देश है। जहां पर हर त्योहार अपने आप में अलग तरीके से मनाया जाता है। यहां पर हर त्योहार अलग राज्य, समुदायों और परंपराओं के अनुसार खास तरीके से सेलिब्रेट किया जाता है। दिवाली सबसे बड़े पर्व के तौर पर उत्सव की तरह मनाया जाता है। हालांकि अयोध्या, काशी, कर्नाटक के साथ सिखों की दिवाली की रोशनी एक नया अर्थ लेकर आती है। आइए जानते हैं विस्तार से।
तमिलनाडु में सूर्योदय से पहले दिवाली मनाने की संस्कृति

तमिलनाडु में दिवाली खास तरीके से मनाई जाती है। तमिलनाडु में दिवाली का जश्न खासतौर पर काली पूजा और नरकासुर वध की कथा पर आधारित है। इस दिन को नरक चतुर्थी और छोटी दिवाली भी कहा जाता है। ऐसे में दिवाली सूर्य उगने से पहले मनाई जाती है। सुबह सूर्योदय से पहले पूजा और उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान लोग जल्दी उठ जाते हैं और सूर्योदय से पहले और घरों में दीप जलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समय नरकासुर नामक राक्षस का वध हुआ था और इसी वजह से बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है। सूर्योदय से पहले दीप जलाया जाता है, ताकि सुबह की ठंडी हवा और अंधेरा दूर करने के लिए दीप जलाना शुभ माना जाता है। इस दौरान घरों के बाहर और अंदर दीप जलाकर सजावट की जाती है। तमिलनाडु में दिवाली से पहले इलायची (अलारू) की पूजा की जाती है, जिससे घर में समृद्धि आती है। घरों में धूप और दीपक जलाकर वातावरण पवित्र किया जाता है। सूर्योदय से पहले मिठाइयां बनाई और बांटी जाती हैं, और पटाखे चलाकर बुराई के नाश का जश्न मनाया जाता है।तमिलनाडु में दिवाली के दिन सुबह जल्दी उठकर पूजा करना और दीप जलाना एक प्रकार से आत्मा और मन की शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। इस रिवाज से यह भी संकेत मिलता है कि अंधकार और बुराई को हराकर प्रकाश और अच्छाई की ओर कदम बढ़ाया जाए।
अयोध्या और काशी की दिवाली

अयोध्या में दिवाली उस वक्त मनाई जाती है, जब भगवान राम अपने 14 साल के वनवास के बाद फिर से अयोध्या लौटते हैं। यहां दिवाली के दिन से पहले महीनों से तैयारी होती है, और फिर पूरे शहर में लाखों दीप जलाए जाते हैं। जिससे यह दिवाली की नगरी दिवाली के दिन कहलाती है। इसी तरह काशी यानी कि वाराणसी में भी दिवाली के दिन खासतौर पर गंगा आरती की जाती है और खासतौर पर दिवाली मनाई जाती है। यहां पर हजारों दीप गंगा नदी में प्रवाहित किए जाते हैं, जो कि एक अद्भुत दिवाली का दृश्य दिखाती है। इस दिवाली की खूबी यह है कि गंगा घाटों की जगमगाहट के साथ भव्य आरती और धार्मिक अनुष्ठान के कई सारे कार्य होते हैं।
कर्नाटक की दिवाली की अनोखी बात
कर्नाटक में दिवाली की शुरुआत नरक चतुर्थी से खासतौर पर होती है। इस दिन दिवाली के दिन लोग सुबह जल्दी उठते हैं और फिर नरक चतुर्थी के दिन स्नान करते हैं। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। कर्नाटक में खासतौर पर दिवाली के दिन एक खास तरह का रिवाज है, जहां पर लोग तेल से नहाते हैं। तेल से नहाना भी बुराई को दूर करना और शरीर को शुद्ध करने की एक प्रक्रिया मानी जाती है। इसे तेल स्नान कहा जाता है। घरों के द्वारों पर खूबसूरत रंगोली बनाई जाती है और दीप जलाकर बुराई के अंधकार को दूर करने की कामना की जाती है। कर्नाटक की दिवाली में रंगीन लाइट और दीपावली के पटाखे भी काफी पसंद किए जाते हैं। इस त्योहार पर खास मिठाइयां बनाई जाती हैं जैसे कुल्फी, बेसन लड्डू, और नारियल के व्यंजन। लोग एक-दूसरे को मिठाइयां बांटते हैं और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं। कर्नाटक की दिवाली इसलिए अनोखी है क्योंकि यह नरक चतुर्दशी, तेल स्नान, और काली पूजा जैसी प्राचीन और धार्मिक परंपराओं के साथ मनाई जाती है, जो इसे अन्य जगहों की दिवाली से अलग बनाती हैं।
सिखों की अनोखी दिवाली

सिखों की भी दिवाली बेहद खास होती है। सिख दिवाली को प्रकाश पर्व के तौर पर मनाते हैं। प्रकाश पर्व खासतौर पर गुरु हरगोबिंद सिंह जी की 1619 में जेल से रिहाई की खुशी में मनाई जाती है। माना जाता है कि गुरु हरगोविंद जी ने अपने साथ 52 राजाओं को भी कैद से मुक्त कराया था। इस वजह से दिवाली को बंदी छोड़ दिवस दिन भी कहा जाता है। सिख इस दिन गुरुद्वारों को दीपों से सजाते हैं और पूरे दिन-रात कीर्तन, अरदास और भजन करते हैं। सबसे खास है अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, जो इस अवसर पर रंग-बिरंगी रोशनी और दीपों से जगमगाता है। “प्रकाश पर्व” का अर्थ है ‘रोशनी का उत्सव’। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है, जो दिवाली के संदेश से मेल खाता है। यह पर्व सिखों के लिए स्वतंत्रता, न्याय, और मानवता के महत्व को दर्शाता है।
असम की अनोखी दिवाली
असम में भी अनोखी दिवाली मनाई जाती है। असम में दिवाली को दीपमालिका कहा जाता है। इसका मतलब होता है, दीपों की श्रृखंला। इस दिन लोग अपने घरों और गलियों को रंग-बिरंगी रोशनी और दीपों से सजाते हैं। असम में दिवाली के समय तीज का त्योहार भी मनाया जाता है, जो मुख्य रूप से महिलाओं का त्योहार है। तीज में महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं, पारंपरिक गीत गाती हैं, और नृत्य करती हैं। यह त्योहार सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की खुशियों का प्रतीक है।
गोवा की सबसे खास दिवाली

गोवा की दिवाली भी बेहद खास होती है। नरक चतुर्दशी (दिवाली से एक दिन पहले) को गोवा में "नरकासुर" नामक राक्षस के वध का उत्सव मनाया जाता है। स्थानीय लोग बड़ी-बड़ी डरावनी और रंग-बिरंगी नरकासुर की पुतलियाँ बनाते हैं, जो अक्सर 10 से 20 फीट ऊंची होती हैं। इन पुतलों को रावण के पुतलों की तरह सजाया जाता है और इनके साथ डरावने चेहरे और शैतानी रूप दर्शाया जाता है। ये पुतले पूरे गोवा में विभिन्न चौराहों और गलियों में सजाए जाते हैं। देर रात या तड़के सुबह, इन पुतलों को जलाया जाता है । इसका यह मतलब होता है बुराई पर अच्छाई की जीत का। कुछ जगहों पर पुतला जलाने से पहले उनका जुलूस निकाला जाता है, जिसमें ढोल-नगाड़ों और डांस के साथ स्थानीय लोग भाग लेते हैं।कई इलाकों में नरकासुर प्रतियोगिता भी होती है, जहाँ सबसे भव्य और रचनात्मक पुतला बनाने वाले को पुरस्कार दिया जाता है। इसके अलावा गोवा में लोग मिट्टी के दीयों, मोमबत्तियों और रोशनियों से अपने घरों को सजाते हैं।