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होम / एन्गेज / संस्कृति / इवेन्ट्स

किसानों के लिए संरक्षक और सांस्कृतिक धन है ‘जौ’

टीम Her Circle |  जुलाई 18, 2024

दुर्गा पूजा की शुरुआत जल्द ही होने वाली है, ऐसे में जगह-जगह पर मां की पूजा अर्चना होगी, जहां कलश स्थापना होगी, ऐसे में जौ की उपयोगिता भी पूरी तरह से बढ़ जाती है। जौ का हमारी संस्कृति में अहम योगदान  है, आइए जानें इनके बारे में विस्तार से। 

सुख-समृद्धि का प्रतीक 

जौ को पूरे भारत में पहली फसल माना गया है। इसलिए इसे ब्रह्मा माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, तो वनस्पतियों में जो फसल सबसे पहले विकसित हुई थी थी, वह जौ ही थी। यही वजह है कि जौ का इस्तेमाल हर पूजन में किया ही जाता है। साथ ही हवन में भी इसका इस्तेमाल होता है। खासतौर से दुर्गा पूजा में इसका महत्व बढ़ जाता है। नवरात्रि के पहले दिन जौ बो कर घटस्थापना की जाती है। जौ को लेकर मान्यता है कि जितना ज्यादा जौ के पौधे बढ़ते हैं, उतनी अधिक सुख समृद्धि बनी रहती हैं, इसलिए कलश स्थापना के साथ मिट्टी के बर्तन में जौ बोये जाते हैं। चूंकि यह पहली फसल मानी जाती है और हम हमेशा अन्न का सम्मान करें, जौ की खेती हमें यही सिखाती है। संस्कृत में इसे यव कहते हैं। रूस, यूक्रेन, अमेरिका, जर्मनी, कनाडा और भारत में मुख्य रूप से पैदा होता है।  

मेहनत का प्रतीक 

नवरात्र में कलश स्थापना के दौरान बोये गए जौ दो तीन दिन में ही अंकुरित हो जाते हैं, लेकिन अगर वो न उगे, तो आपको काफी मेहनत करनी होगी और उसके बाद ही सफलता मिलेगी। यह इस बात का भी संकेत होता है। यह खासकर यूरेशिया में 10,000 साल पहले से उगाया जा रहा है, वहीं कई जगहों पर इसका इस्तेमाल पेय पदार्थ के रूप में भी किया जाता रहा है और कई जगहों पर यह पशु चारा के रूप में उपयोग किया गया है, क्योंकि मनुष्य के साथ-साथ इंसानों के लिए यह काफी अच्छा होता है। 

शादी पर्व और त्यौहार में जौ 

 दरअसल, हिन्दू धर्म में भी जौ का बड़ा महत्व है, होली में नव भारतीय संस्कृति में इसका उपयोग होता है, जब होली के एक दिन पहले भारतीय संवत किया जाता है, उसमें अन्न खाने की परम्परा जौ के बगैर पूरी नहीं होती है। बता दें कि कई लोग रंग खेलने के बाद, पहले दही के साथ जौ को खाकर ही नए साल की शुरुआत करते हैं। 

किसानों के लिए सेवियर है जौ 

किसानों के लिए जौ इसलिए भी सेवियर है, क्योंकि यह एक ऐसी फसल है, जिससे एक साथ काफी उन्नति हो जाती है, साथ ही साथ भूमि की दिशा में भी सुधार होता है और जौ में सिंचाई की भी कम जरूरत होती है और इससे पानी की बचत भी अच्छी तरह से हो जाती है और इस पानी का प्रयोग मूंग की फसल के लिए भी किया जा सकता है। एक संदर्भ यह भी मिलता है कि एक्सपर्ट बताते हैं कि जौ ग्लैडिएटर का एक विशेष भोजन था “जौ-खाद” कहा जाता है। बाद में यानी रोमन काल में गेहूं ने जौ को मुख्य रूप से बदल दिया था। गौरतलब है कि जौ व्यंजन के रूप में एक प्रमुख भोजन रहा है। यह अनाज सैनिकों के लिए सेवियर फूड होता है। वहीं, मध्ययुगीन यूरोप में जौ से बनी रोटी किसान भोजन के रूप में जाना जाता था। 

शादी में जौ की उपयोगिता

बेटियों के ब्याह में द्वाराचार जौ के बिना नहीं होता है, क्योंकि माना जाता है कि अगर बेटियों को जौ दिया जाए, तो इससे उनके अनाज भंडार भरे रहते हैं, इसलिए बिहार और उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर जब लड़कियां अपने मायके से ससुराल विदा हो रही होती हैं, तो उनको खोयचे में चावल के अलावा जौ भी दिया जाता है, यह हर तरह से सुख समृद्धि ही लाती है। 

जौ बचाती है बीमारियों से

जौ एक ऐसी चीज है, जो कई बीमारियों से बचाने में सहायक होती है। इसलिए तो नवजात बच्चों को भी बार्ली वॉटर दिया जाता है, क्योंकि इसमें इम्यून सिस्टम को बेहतर करने के गुर होते हैं। साथ ही इसमें, सेलेनियम होता है, जो बच्चों की सेहत के लिए काफी अच्छा होता है। इसमें फाइबर, पोटैशियम, आयरन और काफी पौष्टिक तत्व होते हैं, जो पथरी, अनीमिया, गठिया, दांतों और हड्डियों से जुड़ीं कई परेशानी से निजात दिलाता है।

 

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