भारत की परंपरा का एक अनूठा नाता हमेशा से नृत्य के साथ रहा है। भारत की नृत्य कला सदा से हमारी संस्कृति, परंपरा, भाषा और सभ्यता की पहचान रही है। खासतौर पर जिस तरह से हर प्रांत ने अपने नृत्य में कॉस्ट्यूम यानी कि वेशभूषा के जरिए अपने प्रांत की संस्कृति को शामिल किया है, वह अद्भुत है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि भिन्न प्रांतों के सांस्कृतिक नृत्यों के दौरान वेशभूषा ने उनकी कला का कद बढ़ाया है। आइए जानते हैं विस्तार से विभिन्न प्रांतों के नृत्य कला में वेशभूषा से जुड़ी सभ्यता के बारे में।
भरतनाट्यम, दक्षिण भारत
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दक्षिण भारत का लोक नृत्य भरतनाट्यम है। यह भरत मुनि के नाट्य शास्त्र पर आधारित है। इसे भारत का सबसे प्राचीन नृत्य माना जाता रहा है। इस नृत्य में डांस के साथ नाटक भी शामिल होता है। भरतनाट्यम में पैरों का संचालन करते हुए हाथ से मुद्राएं बनाई जाती है। भरतनाट्यम में साड़ी पेंट के तौर पर होती है। ज्ञात हो कि भरतनाट्यम की वेशभूषा कांचीपुरम रेशम से बने पांच हिस्से वाले वस्त्र हैं, जिसमें ब्लाउज, पायजामा, मेलक्कू और पीठ के वस्त्र को शामिल किया जाता है। भरतनाट्यम के प्राचीन समय के दौरान से ही, साड़ी मूल वस्त्र रहा है, जिसे नृत्य के दौरान पहना जाता है। पोशाक रंगीन और चमक वाली होती हैं। साड़ी पेंट जैसी होने के कारण नृत्य मुद्राएं करने में आसानी होती है।
कथक, उत्तर भारत
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कथक उत्तर भारतीय नृत्य है। भारतीय पोशाक के तौर पर कथक की वेशभूषा बनाई गई है। पहले इसकी वेशभूषा घाघरा और चोली हुआ करती थी, फिर इसे चूड़ीदार, पजामा और अंगरखा में शामिल किया गया है। ऊपरी शरीर पर पहने जाने वाला पोशाक दुपट्टा होता है, जिसे कई लोग सिर पर दुपट्टा रखकर कथक करते हैं। कुछ महिला नर्तकियां चूड़ीदार या फिर फिटिंग वाला पायजामा पहनते हैं, वहीं पुरुष कथक नर्तक रेशम की धोती के साथ रेशम का दुपट्टा पहनते हैं। कई लोग जैकेट भी पहनते हैं।
कथकली, केरल
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कथकली केरल का पारंपरिक नृत्य है, जो कि खासतौर पर अपने पहनावे को लेकर सबसे लोकप्रिय है। चेहरे पर भारी मुखौटे और पोषाक के साथ नर्तक अपनी कला को पेश करते हैं। इस नृत्य कला को पेश करने के पीछे सालों की मेहनत होती है। जब भी इस नृत्य की तैयारी की जाती है, तो इसके पोशक और मुखौटे को पहनकर किया जाता है। इसे रंग-बिरंगा नृत्य कहा जाता है। कमर पर सफेद कपड़े के बड़े टुकड़ों से बनाई हुई खास प्रकार का कपड़ा लपेट देते हैं। नीचे का किनारा रेशमी कपड़े और मोतियों से सजाया जाता है। साथ ही लाल और पीले रंग का कुर्ता और ऊपर से दुपट्टा पहनाया जाता है। महिलाएं सिर पर भी नृत्य के दौरान एक दुपट्टा ओढ़ती हैं।
ओडिसी, ओडिया
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ओडिसी नृत्य में वेशभूषा प्रमुख है, क्योंकि वह पूरे नृत्य को प्रस्तुत करती है। साथ ही ओडिसा की संस्कृति की झलक भी इस नृत्य के पहनावे में दिखाई देती है। इस नृत्य के लिए महिला नर्तकी शानदार पट्टा साड़ी, नौ गज की रेशम साड़ी पहनती हैं। इस साड़ी में ओडिसा की परंपरा झलकती है। इस साड़ी के साथ एक खास ब्लाउज पहना जाता है, जिसे कांचुला कहते हैं। साड़ी के सामने की प्लीट्स को थलैप्पु कहा जाता है। महिलाएं कमर के चारों तरफ एक रेशम का कपड़ा भी पहनती हैं। इसके साथ कमरबंद भी होता है, जिसे झोभा कहा जाता है।
कुचिपुड़ी,आंध्र प्रदेश
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कुचिपुड़ी की वेशभूषा आमतौर पर कथक जैसी ही होती है। महिलाएं इसमें हल्के मेकअप के साथ साड़ी, गजरा और पारंपरिक आभूषक के साथ नृत्य के लिए खुद को तैयार करती हैं। 17 वीं सदी से इस वेशभूषा का चलन है। कमर पर सोने या फिर पीतल से बनी हुई हल्की धातु की बेल्ट साड़ी के ऊपर से बांधी जाती है।
मणिपुरी,मणिपुर
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मणिपुरी नृत्य अपनी वेषभूषा के कारण आकर्षित दिखाई पड़ता है। ड्रम जैसी दिखने वाली लंबी स्कर्ट महिलाएं पहनती हैं, जो कि पूरी तरह से कढ़ाई से भरा हुआ होता है। इसके साथ वह गहरे रंग के वेलवेट के ब्लाउज पहनती हैं। पुरुष नर्तक धोती-कुर्ता और शॉल नृत्य के दौरान पहनते हैं।
मोहिनीअट्टम, केरल
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मोहिनीअट्टम में नृत्य के दौरान पांरपरिक सफेद और गोल्डन बॉर्डर वाली साड़ी पहनी जाती है। इसके साथ सोने के गहने, कमरबंद के साथ गजरा पहना जाता है। खास तौर पर चमेली के फूलों से बने गजरे का इस्तेमाल किया जाता है।