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होम / एन्गेज / संस्कृति / इवेन्ट्स

इस साल एक नहीं 5 बार मनाएं नया साल, जानें इससे जुड़ी परंपरा

टीम Her Circle |  जनवरी 03, 2025

नया साल में हम सभी प्रवेश कर चुके हैं। नया साल का स्वागत हम सभी हमेशा ही नई उम्मीद और उल्लास के साथ करते हैं। लेकिन अगर आप सोच रही हैं कि नए साल का जश्न और उल्लास साल की पहली तारीख से खत्म हो गया है, तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जी हां, क्या आप जानती हैं कि नए साल का स्वागत करना अभी भी बाकी है, वो भी एक नहीं बल्कि पांच बार। आइए विस्तार से जानते हैं कैसे नए साल के आगमन की खुशियां एक नहीं बल्कि 5 बार मनाई जाएगी।

गुड़ी पड़वा नए साल का जश्न

गुड़ी पड़वा मराठी और कोंकणी समुदाय के लोगों के लिए नए साल की शुरुआत लेकर आता है। गुड़ी पड़वा के दिन घर में गुड़ी लगाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है। इस दिन लोग आपस में एक दूसरे से मिलते हैं और नए साल की शुभकामनाओं के साथ एक दूसरे को तोहफे भी देते हैं। इस दिन घर की साफ-सफाई की जाती है और रंगोली भी बनाई जाती है। उल्लेखनीय है कि गुड़ी पड़वा के दिन लोग नए साल के लिए संकल्प भी लेते हैं। .यह भी जान लें कि गुड़ी पड़वा के माध्यम से मराठा योद्धाओं के जीत का जश्न मनाया जाता है। महाराष्ट्र में नई फसल के आगमन का प्रतीक भी गुड़ी पड़वा को माना जाता है। क्योंकि गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका। नए साल का स्वागत खुद को विजयी मानकर किया जाता है। नकारात्मक विचारों से खुद को दूर रखने का वचन लिया जाता है। एक तरह से नए साल का स्वागत सकारात्मक ऊर्जा के साथ करने का विचार इसी दिन से शुरू होता है।

बैसाखी और नया साल

पंजाब में बैसाखी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। बैसाखी के दिन से ही वसंत ऋतु का आगमन होता है। सिख के अलावा बैसाखी को बंगाली कैलेंडर का भी पहला दिन माना जाता है। बंगाल में इस दिन से त्योहारों की शुरुआत होती है। बैसाखी को एक तरह से किसानों के लिए फसलों को लेकर खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। यह भी है कि शहीदों को बैसाखी के दिन श्रद्धांजलि दी जाती है। खासतौर पर जलियांवाला बाग में सैकड़ों लोगों पर चलाई गई गोलियों में  अमर शहीदों को याद किया जाता है। जैसा कि हमने बताया कि बंगाल में इस दिन से नए साल की शुरुआत होती है। ऐसे में वहां पर फसल की कटाई शुरू की जाती है और इस दिन किसी न किसी नए काम की शुरुआत की जाती है। दिलचस्प है कि पंजाब में जहां बैसाखी, तो वहीं केरल में विषु, ओडिशा में महाविषुव, तमिलनाडु में पुथांडु और असम में बोहाग बिहू के नाम से बैसाखी के उत्सव को मनाया जाता है।

पारसी नववर्ष

पारसी नववर्ष को नवरोज भी कहते हैं, जो कि  एक तरह से पारसी त्यौहार है। पारसी इसे नवीनीकरण और एकता का प्रतीक मानते हैं। नए साल के आगमन के लिए घर की साफ-सफाई की जाती है और नए साल के स्वागत के लिए रंगोली भी बनाई जाती है। इस मौके पर महिलाएं तरह-तरह के व्यंजन बनाती हैं। साथ ही एक दूसरे के घर पर बधाई के साथ तोहफे भी दिए जाते हैं। इसे खासतौर पर प्रकृति के प्रति अपना प्रेम जाहिर करने के लिए जाना जाता है। पारसी नववर्ष में परिवार के सदस्य एक साथ एकत्रित होकर एक दूसरे से मिलते हैं और मिलने और खुशियां बांटने का यह उत्सव एक महीने तक जारी रहता है। यूरोप और अमेरिका में भी ईरानी समुदाय के लिए नवरोज मनाते हैं। 

हिजरी नव वर्ष

इस्लामिक नए साल की शुरुआत को हिजरी नया साल कहते हैं, जो कि चांद के हिसाब से चलता है। हिजरी कैलेंडर में चंद्रमा की पोजीशन के हिसाब से इस साल को जोड़ा और घटाया जाता है। यानी कि साल में लगभग 355 दिन होते हैं, जो कि 12 महीने के हिसाब से होता है। चांद के चाल के अनुसार हिजरी नव वर्ष 10 दिन पीछे खिसक जाता है। जान लें कि इस्लामिक कैलेंडर में एक दिन की शुरुआत सूर्यास्त के समय से होती है। कई तरह के पकवान बनाना। साफ-सफाई और नए कपड़ों की खरीदारी के साथ एक दूसरे से मुलाकात का सिलसिला हिजरी नव वर्ष की पहचान है।

दीपावली के दौरान नया साल

दीपावली के दौरान भी नया साल आता है। जो कि सभी समुदाय के लोग मनाते हैं। देखा जाए, तो दिवाली के लंबे जश्न का एक हिस्सा नया साल भी है। खास तौर पर जैन समुदाय के नए साल की शुरुआत दीपावली के दिन से ही होती है। गुजराती समुदाय के लोग भी दीपावली के अगले दिन को नया साल मनाते हैं, जिसे परीवा कहते हैं। नए साल के मौके पर खान-पान और मिठाईयों के साथ एक दूसरे को तोहफे देना और एक दूसरे से मुलाकात करने का सिलसिला जारी रहता है।

 

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