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होम / एन्गेज / संस्कृति / इवेन्ट्स

‘नमस्कार’ हो या ‘वणक्कम’, भारतीय संस्कृति में इसका एक ही अर्थ

प्राची |  अप्रैल 27, 2025

चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान और एक हथेली से दूसरी हथेली की मुलाकात। भारतीय संस्कृति की इस क्रिया को 'नमस्कार' कहते हैं। आप चाहे जिस भी भाषा, जाति या धर्म से जुड़े क्यों न हो, एक नमस्कार करने की मुद्रा और सत्कार का भाव ऐसा है, जिसने हम सभी को सम्मान और आदर के भाव से जोड़े रखा है। बचपन से लेकर बुढ़ापे की दहलीज तक, नमस्कार करने का भाव और क्रिया में कई तरह के बदलाव जरूर होते हैं। बचपन में जहां मां नन्हें हाथों को जोड़कर नमस्कार करना सीखाती है, वहीं नमस्कार बुढ़ापे तक हमें किसी अन्य की हथेलियों से सम्मान देती हुई नजर आती है। आज हम नमस्कार की इसी सभ्यता के बारे में बात करेंगे। नमस्कार एक ऐसा भाव बनकर उभरी है, जो जाति धर्म की रेखा पार कर दूर से अपनी आजाद सोच के लिए पहचानी जाती है। आइए जानते हैं विस्तार से।

सकारात्मक प्रकाश को फैलाना

ब्रांड गुरू जान्हवी राऊल भारतीय संस्कृति में नमस्कार के स्थान को दर्शाते हुए कहती हैं कि इस भाव का अर्थ है कि एक दूसरे के हृदय में एक सकारात्मक प्रकाश को फैलाना। नमस्कार यह शब्द संस्कृत के नमस् शब्द से निकला है। इस भावमुद्रा का अर्त है एक आत्मा का दूसरी आत्मा के लिए आभार प्रकट करना। नमस्ते के अतिरिक्त हम नमस्कार और प्रणाम शब्द का प्रयोग करते हैं। वह आगे कहती हैं कि अगर आपको दुनिया में सभी लोगों को नमस्कार कहना चाहती हैं, तो आपको 2796 भाषाएं सीखनी होंगी। वहीं अगर आप विश्व में देखती हैं, तो आपको नमस्ते कहने के कई तरीके और शब्द मिलते हैं। हिंदी में नमस्ते, प्रणाम, संस्कृति में नमस्ते, राजस्थानी में खाम्माघनी, राम राम, तमिल में वन्नकम, उर्दू में अस्सलाम वालेकुम, मणिपुरी में खुरुमजारी, कन्नड़ में नमस्कारा, बंगाली और असमी में नोमेस्कार, तेलुगू में नमस्कार: के साथ अन्य भाषाओं में भी इसी तरह एक दूसरे से अपना भाव व्यक्त करने के लिए नमस्कार का इस तरह से उच्चारण किया जाता है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि सदियों से भारतीय संस्कृति ने कई नए आविष्कार और विज्ञान का चमत्कार देखा है, लेकिन नमस्कार ने अपनी पैठ को भारतीय पंरपरा और सभ्यता के पटल पर बनाए रखा है।

कृतज्ञता और समर्पण की भावना

नमस्कार करने के पीछे का प्रयोजन कृतज्ञता और समर्पण की भावना को जागृत करना है। एक तरह से यह विन्रमता के भाव को जगाते हुए हमें श्रेष्ठ होने के अंहकार से दूर रखता है। ब्लॅागर ऑथर बहनों की जोड़ी मीनल सोनल कहती हैं कि नमस्ते, नमस्कार, वणक्कम, नमस्कारम यह भिन्न -भिन्न भाषाओं में एक ही अर्थ है जो सम्मान, विन्रमता और शिष्टाचार का प्रतीक है। एक तरह से यह आध्यात्मिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने का एक माध्यम है। सीनियर जर्नलिस्ट पूजा सामंत बताती हैं कि शुरू से ही नमस्कार और प्रणाम के जरिए आदर देने की परंपरा और शिष्टाचार रहा है। अंग्रेजी में गुड मॉर्निंग और गुड नाइट कहीं न कहीं उस वक्त को दर्शाता है, हम सुबह गुड नाइट् नहीं कह सकते हैं। लेकिन प्रणाम, नमस्ते या वणक्कम कहते हैं, वो दिन किसी प्रहर में कहा जा सकता है। इससे सामने वाले व्यक्ति को इज्जत दी जाती है। जब हम क्लासिकल डांस के दौरान भी एक दूसरे को हाथ जोड़कर शुरुआत की जाती है। जिसका जिक्र नाट्य शास्त्र में किया गया है। अगर हम किसी मुलाकात में नमस्कार या नमस्ते नहीं कहते हैं, तो मन में यह बात भी रह जाती है कि हमने सामने वाले का सत्कार नहीं किया, क्योंकि यह हमारी परंपरा से जुड़ा है। परंपरा कभी-भी हमारा साथ नहीं छोड़ती है।

नमस्कार दर्शाता है, वसुधैव कुटुंबकम

संगीतकार और फिल्म मेकर धनश्री गणात्रा कहती हैं कि हमारी संस्कृति ऐसी है, जहां पर हमें बड़ों का आदर करना सिखाया है। अपने माता-पिता अपने गुरूजन, जो किसी भी प्रकार से बड़े हैं, उनका आदर करना सिखाया है। मुझे लगता है कि इसी से नमस्कार या नमस्ते की संस्कृति भी इसी से उत्पन्न हुई है। हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत से नमस्कार का जन्म हुआ है। मराठी में नमस्कार और छोटे गांव और कस्बों में राम-राम कहा जाता है। मथुरा, वृदांवन और बनारस में वहां पर राधे-राधे कहने की प्रथा है। गुजरात में जय श्री कृष्णा कहते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि इस नमस्कार के भाव के कारण हम अजनबीयों से भी अपनों की तरह मिलते हैं। हिमाचल प्रदेश और उसके आस-पास के इलाकों में चरण वदन कहते हैं। ग्लोबलाइजेशन के दौर में नमस्ते इंडिया और नमस्ते भारत हमाा नारा बन चुका है। यह हमारी भारतीय पंरपरा जहां पर इतनी सारी भाषाएं और इतने सारे धर्म एक साथ वसुधैव कुटुंबकम की तरह एक साथ रहते हैं। यहां पर भाषा और संस्कृति की विविधता के साथ नमस्ते के भाव को लेकर एकता का एक उदाहरण देखा जाता है। 

मैं आपको नमन करता हूं

लेखक फाल्गुनी जैन नमस्कार के चमत्कार पर कहती हैं कि नमस्ते सिर्फ अभिवादन नहीं है। संस्कृत से लिया गया शब्द है। इसका अर्थ है मैं आपको नमन करता हूं जो कि हथेलियों को मिलाकर झुककर किया जाता है। यह भाव बोलने और सुनने वाले के मन के अंदर मौजूद दिव्यता को दर्शाता है। हथेलियां जोड़ना एकता औऱ सम्मान का प्रतीक है। हल्का सा झुकना विन्रमता को दर्शाता है। दूसरी तरफ वैज्ञानिक नजरिए से हथेलियों को दबाने से एक्यूप्रेशन पॅाइंट सक्रिय होते हैं, जिससे सेहत को बढ़ावा मिलता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो, नमस्ते शांति का प्रतीक है, जो इसे सद्भाव का एक सार्वभौमिक संकेत बनाता है। 

 

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