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होम / एन्गेज / संस्कृति / इवेन्ट्स

नारियल और भारतीय संस्कृति के बीच है परंपराओं का अटूट संगम

टीम Her Circle |  सितंबर 10, 2025

नारियल और भारतीय संस्कृति से जुड़ाव कई तरह से खास है। आप यह कह सकती हैं कि नारियल में धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व भी रहा है। इससे हम सभी वाकिफ हैं कि भारत विविधताओं से भरा देश है। जहां पर मिट्टी के कण से लेकर अनाज के दाने तक हर किसी न किसी का सांस्कृतिक महत्व जरूर होता है। भारत की संस्कृति में नारियल यानी कि श्रीफल का सबसे गहरा जुड़ाव रहा है। नारियल केवल एक फल नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिकता, परंपरा और जीवनशैली का प्रतीक है। आइए जानते हैं विस्तार से।

नारियल का धार्मिक महत्व

भारत में किसी शुभ काम से पहले नारियल फोड़ कर की जाती है। चाहे फिर गृह प्रवेश हो या फिर नया व्यवसाय शुरू करना हो, मंदिर की स्थापना हो या फिर कोई अन्य तरह का धार्मिक अनुष्ठान। हर जगह पर नारियल अनिवार्य तौर से उपयोग किया जाता है। सबसे अधिक नारियल का इस्तेमाल देवी-देवताओं को अर्पित करने के लिए पूजा में किया जाता है। नारियल को पवित्रता और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। पूजा में नारियल को तोड़ना केवल धर्म का जरिया नहीं है लेकिन नारियल को फोड़ने के साथ अहंकार को तोड़ने का प्रतीक होता है। नारियल अहम यानी कि मैं को समाप्त करने का एक रास्ता है। 

नारियल का सांस्कृतिक महत्व

नारियल का सांस्कृतिक महत्व भी अहम है। नारियल केवल धर्म के रास्ते पर नहीं दिखाई देती है, बल्कि भारतीय त्योहार के साथ विवाह समारोहों, लोककथाओं और रीति-रिवाजों में भी प्रतिष्ठा की अहमियत रखता है। दक्षिण भारत में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में नारियल का सबसे अधिक सांस्कृतिक महत्व है। इसी वजह से केरल को नारियल की भूमि कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि केरल शब्द की उत्पत्ति 'केर' से हुई है, जिसका मतलब नारियल होता है। भारत संस्कृति में नेगेटिव ऊर्जा को खत्म करने के लिए नारियल को सिर पर से घुमाया जाता है।

नारियल का सामाजिक और पारिवारिक महत्व

भारतीय संस्कृति में अतिथि देवो भव : का सिद्धांत बहुत अहम है। कई क्षेत्रों में खासकर दक्षिण भारत में जब कोई खास अतिथि घर आता है, तो उसे नारियल और पुष्पमाला देकर सम्मान दिया जाता है। कुछ जगहों पर जब कोई शिशु जन्म लेता है, तो उस अवसर पर घर में पूजा के साथ नारियल फोड़ा जाता है। यह क्रिया बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए किया जाता है। परिवार के बड़े-बुजुर्ग नारियल भेंट कर आशीर्वाद देते हैं और इसे शुभकामनाओं का प्रतीक माना जाता है। नारियल का प्रतीकात्मक महत्व भी साथ है। नारियल का कठोर बाहरी आवरण और भीतर का मीठा जल यह भी दर्शाता है कि व्यक्ति को भी बाहर से कठोर और अंदर से नम्र और पवित्र होना चाहिए। दूसरी तरफ यह भी माना जाता है कि एक नारियल में जल, गूदा और खोल एक साथ रहते हैं, जो कि सामाजिक और पारिवारिक एकता का प्रतीक माना जाता है। आप यह समझ सकती हैं कि नारियल भारतीय समाज में केवल एक फल नहीं, बल्कि शुभ, समर्पण ,एकता और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक है। यह पीढ़ियों से पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते को मजबूती देने में एक खास भूमिका निभा रहा है।

आयुर्वेद और चिकित्सा में नारियल की भूमिका

नारियल को आयुर्वेद में अत्यंत पवित्र, पौष्टिक और बहु उपयोगी माना गया है। इसके विभिन्न भाग जैसे कि नारियल पानी का जल, नारियल का सफेद भाग, तेल और छिलका सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार नारियल शरीर और मानसिक तौर पर सभी के लिए हितकारी माना गया है। यह माना गया है कि नारियल वात,पित्त और कफ तीनों को अच्छे से संतुलित करता है। शरीर को ठंडक देता है और पेट से जुड़ी समस्याओं में लाभकारी भी माना गया है। नारियल पानी को डिहाइड्रेशन में उपयोगी माना गया है। इसे एक तरह से प्राकृतिक इलेक्ट्रोलाइट्स से भरपूर, गर्मी, दस्त, उल्टी और बुखार में शरीर को ऊर्जा देने का काम करता है। नारियल गुदा में फाइबर, हेल्दी फैट, विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं, जो कि शरीर को बल,ऊर्जा देती है। यह कब्ज और अपच की समस्या में भी लाभकारी होता है। अगर आप संतुलित मात्रा में इसका सेवन करती हैं, तो यह आपके दिल के लिए लाभकारी होता है। आयुर्वेद में भी यह माना गया है कि खांसी और जुकाम में राहत के लिए गुनगुने नारियल तेल में कपूर मिलाकर सीने पर लगाने से आराम मिलता है। यह भी माना गया है कि जलन और घाव पर नारियल की मलाई लगाने से संक्रमण नहीं होता और घाव जल्दी भर जाता है। आयुर्वेद में साफ तौर पर कहा गया है कि नारियल एक संपूर्ण औषधीय फल है, जिसे आयुर्वेद ने कल्पवृक्ष की संज्ञा दी है। यह केवल आहार नहीं है, बल्कि आरोग्य का आधार है। इसके लिए हमेशा संतुलित सेवन से अनेक शारीरिक और मानसिक रोगों से बचाया जा सकता है।

क्या है नारियल का आर्थिक और व्यावसायिक महत्व

नारियल को कृषि उद्योग का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। भारत, श्रीलंका, फिलीपींस, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों में नारियल को प्रमुख फसल माना गया है। भारत में खासतौर से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गोवा नारियल उत्पादन में सबसे आगे माना गया है। इसी को देखते हुए कोकोनट डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना भारत सरकार द्वारा नारियल के उद्योग को बढ़ावा देने के लिए स्थापित की गई संस्था है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि किसानों के लिए एक स्थिर आय का जरिया नारियल बन चुका है, वो भी कई सालों से। एक नारियल वृक्ष कई सालों तक फल देता है, जिससे किसानों को नियमित आय मिलती है। भारत के साथ अन्य देशों में भी नारियल तेल,नारियल पानी के साथ सूखे हुए नारियल का निर्यात होता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। याद रहे कि नारियल से जुड़े उद्योगों में किसान, कारीगर, मजदूरी और पैकेजिंग को लेकर लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। घरेलू उद्योग को भी इससे बढ़ावा मिलता है। खासतौर पर महिलाओं को आर्थिक तौर पर बल मिलता है। नारियल के उद्योग से भी काफी बढ़ावा मिलता है। खासतौर पर नारियल का तेल, नारियल शुगर, नारियल आटा, नारियल चिप्स, नारियल दूध और नारियल से क्रीम भी बनाई जाती है। यह भी जान लें कि नारियल का पेड़ पर्यावरण के लिए भी अधिक लाभकारी होता है। यह कम पानी में भी जीवित रह सकती है। नारियल का पेड़ किसी न किसी तरह से उपयोग में आता है, जैसे पत्तियों से झाड़ू,टोकरी और छप्पर आदि बनाए जाते हैं। याद रहे कि एक छोटा-सा फल होते हुए भी नारियल भारतीय जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।

 

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