आपने कई बार यह सुना होगा कि महिलाओं को कानून में कई सारे अधिकार दिए गए हैं, लेकिन महिलाएं अक्सर इन अधिकारों से अनजान रहती हैं। क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि ऐसे कौन से अधिकार हैं जिस पर महिलाओं का पूरा हक है। अगर आप किसी महिला से यह पूछती हैं कि क्या उन्हें खुद से जुड़े अधिकारों के बारे में जानकारी है, तो वह घरेलू हिंसा से जुड़े अधिकार या फिर दफ्तर में यौन उत्पीड़न से जुड़े अधिकारों के अलावा बाकी के अधिकारों को लेकर सोच में पड़ जाती हैं, ऐसे में पढ़ते हैं महिलाओं से जुड़े उन जरूरी अधिकारों के बारे में जिनके बारे में जानकारी होना जरूरी है। आइए जानते हैं विस्तार से।
नाम गुप्त रखने का अधिकार
जब भी महिला किसी उत्पीड़न का सामना कर रही हैं या फिर किसी यौन हमले का सामना कर चुकी हैं, तो उन्हें इस बात का पूरा अधिकार है कि वे इस मामले में अपना नाम गुप्त रख सकती हैं। अगर किसी महिला को किसी आपराधिक मामले में भी अपना बयान दर्ज करवाना है, तो अपनी सुरक्षा के लिए वे गुमनाम व्यक्ति के तौर पर अपना बयान दर्ज करवा सकती हैं।
गिरफ्तारी का अधिकार
अगर किसी मामले में महिला की गिरफ्तारी होती है, तो उसे पूरा अधिकार है कि शाम को 6 बजे के बाद वह गिरफ्तार नहीं हो सकती हैं। किसी मामले में पुलिस के पास अगर महिला के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट रहता है, तो भी महिला शाम को 6 बजे के बाद अपनी गिरफ्तारी से साफ तौर पर इंकार कर सकती हैं। इसके साथ ही महिलाओं को यह पूरा अधिकार है कि किसी भी पूछताछ से जुड़े मामले में वह किसी परिचित की मौजूदगी में रहकर ही अपना बयान दर्ज करा सकती है। अकेले में पूछताछ के लिए इंकार करने का महिलाओं को पूरा अधिकार है।
फ्री लीगल एड का अधिकार
इसका मतलब होता है मुफ्त कानूनी सहायता। भारत में महिलाएं किसी भी जरूरी मामले के लिए मुफ्त कानूनी सहायता ले सकती हैं। ऐसे कई मामले में हैं, जहां महिलाओं को कानूनी सलाह और सहायता की जरूरत पड़ती है, लेकिन आर्थिक परेशानी के कारण वह कानूनी सहायता को लेकर हिचक महसूस करती हैं। यह भी ध्यान रखें कि छोटे और बड़े हर तरह के मामले में महिलाएं मुफ्त कानूनी सहायता ले सकती हैं।
समान पारिश्रमिक का अधिकार
महिला और पुरुषों के वेतन को लेकर आपने कई तरह की बहस और चर्चा कई बार सुनी होगी, लेकिन आपको बता दें कि इससे जुड़ा हुआ कानून भी है, जिसके अनुसार महिलाओं और पुरुषों को एक समान काम के लिए एक जैसा ही वेतन मिलना चाहिए। महिला होने के नाते पुरुषों से कम वेतन मिलने पर आवाज को उठाने का पूरा अधिकार है।
फैक्टरियों में काम करने वाली महिलाओं के लिए अधिकार
इसके अंतर्गत महिला और पुरुषों को अलग शौचालय की सुविधा होनी चाहिए। सफाई और स्वास्थ्य संबंधी सुविधा भी एक समान होनी चाहिए। महिलाओं को एक तय वजन ही उठाना अनिवार्य है। महिलाओं को चलती हुई मशीन में काम नहीं करने का अधिकार है। साथ ही महिलाओं से एक सप्ताह में 48 घंटों से अधिक का काम नहीं लिया जा सकता है।
प्रसूति प्रसुविधा (डिलीवरी के पहले और बाद में मिलने वाले अधिकार)
कामकाजी महिलाओं को प्रसूति ( डिलीवरी) के पहले 12 सप्ताह की छुट्टी मिलनी चाहिए। इसका वेतन भी मिलना चाहिए। अगर महिला शादीशुदा नहीं है, तो भी उसे अवकाश लेने का पूरा अधिकार है। महिलाएं इन छुट्टियों का उपयोग डिलीवरी के बाद या पहले भी ले सकती है। महिलाओं से डिलीवरी के 6 सप्ताह बाद तक काम लेना कानूनी अपराध माना गया है। प्रेग्नेंसी के आखिरी महीने में महिला से कोई भी थकाने वाला काम नहीं करवाया जा सकता है। यदि बच्चा पैदा होने के बाद किसी वजह से महिला की मौत हो जाती है, तो भी उसे 6 सप्ताह का वेतन दिया जाएगा।