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प्रेरणा

महिलाओं के लिए हुनर दिखाने का भी अवसर बना दशहरा मेला, पूरे भारत में विजयादशमी और दशहरा की धूम

टीम Her Circle |  अक्टूबर 05, 2022

पूरे भारत में दशहरा और विजयादशमी धूमधाम से मनाई जा रही है। यह दिन भगवान राम द्वारा रावण के वध करने की खुशी में मनाया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है , साथ ही दुर्गा मां ने 9 दिनों के संघर्ष के बाद, आखिरकार महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। ऐसे में पूरे भारत में कई जगहों पर रावण दहन किया जाता है और कई जगहों पर राम लीला भी होती है। दुर्गा पूजा के दसवें दिन दशहरा को भी लोग पूरी तरह से एन्जॉय करते हैं। साथ ही कई महिला उद्यमी भी कई जगहों पर दशहरा के मेलों में आकर अपना हुनर दिखा रही हैं। तो आइए जानते हैं, भारत में ही नहीं, विश्व में कहां किस तरह से इस दिन के जश्न को मनाया जा रहा है।

पटना में मेला

पटना के ज्ञान भवन में आयोजित पांच दिवसीय वार्षिक दशहरा मेला में लघु और मध्यम उद्यमियों के लिए अच्छा मौका है, यहां  200 से अधिक स्टॉल लगाकर महिला विकास मंच की महिला कारीगरों को मौके दिए जा रहे हैं कि वह अपनी कला का प्रदर्शन करें। खास बात यह है कि हाथ से बनी भागलपुरी रेशम की साड़ियां, मधुबनी पेंटिंग, पारंपरिक कठपुतली और अन्य दस्तकारी उत्पाद बनाने और बेचने वाली महिला कारीगर इस कार्यक्रम में खास आकर्षण का केंद्र हैं।

कर्नाटक में खास गोम्बे हब्बा 

गोम्बे हब्बा या गुड़िया की परंपरा एक उत्सव की रस्म है, जिसमें कर्नाटक में महिलाएं नवरात्रि और दशहरा के दौरान भाग लेती हैं, जबकि परंपरागत रूप से, गुड़िया के लिए विषय महाभारत, रामायण और दशावतारा की कहानियों के इर्द-गिर्द घूमते हैं, इस साल गुड़िया निर्माता और विक्रेता महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाले विषयों को पेश कर रहे हैं। इस साल बेंगलुरू और मैसूर के बाजारों में आई गुड़िया की एक अनूठी किस्म स्तनपान कराने वाली महिलाओं की है।

मैसूर का लोकप्रिय दशहरा 

पूरे विश्व में मैसूर का दशहरा बेहद लोकप्रिय है, इस अवसर पर मैसूर पैलेस को खास तौर से सजाया जाता है। खास बात यह है कि कोविड महामारी के बाद यह पहली बार होगा, जब इस तरह से पैलेस की साज-सज्जा की जा रही है। इसे 2000 से भी अधिक दीपक से सजाया गया है। दशहरे के दिन मैसूर का शाही परिवार पूजा करता है और इसके साथ ही शाही दरबार का आयोजन भी होता है, साथ ही ऐसी मान्यता है कि मैसूर के शाही परिवार द्वारा दशहरे की सवारी की शुरुआत 15वीं शताब्दी में वाडिया राजा वोडेयार ने की थी। इस आयोजन के दौरान कर्नाटक सरकार की तरफ से कई साड़ी सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। 

कोटा में रिमोट से रावण दहन 

इस साल कोटा में अलग तरीके से रावण दहन किया जा रहा है। राष्ट्रीय मेला दशहरा 2022 के अंतर्गत  मेला परिसर विजयश्री रंगमंच पर इस बार रावण दहन रिमोट से स्टेप बाय स्टेप होगा। रावण का पुतला पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर कार्य करेगा, जिससे रिमोट से पुतले की आतिशबाजी को नियंत्रित किया जा सकेगा।

दिल्ली के लाल किला पर दशहरा मेला 

काफी लम्बे समय के बाद, दिल्ली के रेड फोर्ट यानी लाल किला पर दशहरा मेला का आयोजन किया गया है। यहां कई रूपों में रावण के पुतले तैयार किये गए हैं। आतिशबाजियों और तरह-तरह की रौशनी का इंतजाम किया गया है। 

वाराणसी की रामलीला है अद्भुत

वाराणसी के रामनगर की रामलीला भी पूरे भारत में लोकप्रिय है। पिछले 30 सालों से धूमधाम से मनाया जा रहा है। आधुनिकता के दौर से अलग आज भी पेट्रोमैक्स की रोशनी में बिना स्टेज और साउंड सिस्टम के यहां रामलीला का मंचन किया जाता है। 

अल्मोड़ा का यादगार दशहरा

अल्मोड़ा में भी दशहरा मेला का खास आयोजन किया जा रहा है। यहां दशहरा का महोत्सव खास तौर से मनाया जा रहा है, जिसमें 22 पुतले बनाये गए हैं और अल्मोड़ा स्टेडियम में इसका दहन किया जाएगा। 

चंडीगढ़ में 20-30 जगहों पर होगा दशहरा का सेलिब्रेशन 

कोविड महामारी की मार के बाद, यह पहली बार है, जब चंडीगढ़ में बड़े ही धूमधाम से दशहरा को सेलिब्रेट किया जा रहा है। कई जगहों पर रामलीला की जा रही है। सेक्टर 46 में जहां लेजर शो के साथ रावण का दहन होगा, वहीं यहां कई प्रोग्राम भी होने वाले हैं, जिसकी शुरुआत शाम में 4 बजे से ही हो जाएगी। इसके अलावा सेक्टर  34, 29, 49 में भी भव्य आयोजन किया जा रहा है। 

कुल्लू दशहरा में होगा सब खास

हिमाचल प्रदेश में मनाया जाने वाले दशहरा पूरे भारत में लोकप्रिय हैं और इस साल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें शामिल होने जा रहे हैं। कुल्लू के धलपुर मैदान में यह आयोजन होगा, जिसमें रथ यात्रा भी होने वाली है और लगभग 300 लोग इसमें शामिल होने वाले हैं। कुल्लू में दशहरा को मनाने का इतिहास 372 साल पुराना है। यहां यह महोत्सव कई दिनों तक मनाये जाते हैं, इस साल यह 5 अक्टूबर से लेकर 11 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। लेकिन यहां के दशहरा की यह खासियत होती है कि यहां रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है, बल्कि यहां लकड़ी से बने आकर्षक और फूलों से सजे रथ में रघुनाथ राजा की सवारी को खींचते हुए दशहरे की शुरुआत होती है। राज परिवार के सदस्य यहां उपस्थित होते हैं और आस-पास कुल्लू के देवी-देवता शोभायमान रहते हैं।

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