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प्रेरणा

इन 5 जगहों की महिलाओं ने गोबर को जरिया बना कर, तैयार कर ली है रोजगार की इमारत

टीम Her Circle |  जुलाई 16, 2023

गाय का गोबर भी भला कभी किसी के लिए कमाई का जरिया बन सकता है ! ऐसा सोचना भी आश्चर्यजनक है। है न ! लेकिन भारत की विभिन्नता ही खास है, यहां ऐसी कई चीजें हो सकती हैं, जो पर्यावरण का संरक्षण करने के साथ-साथ काफी कुछ करती हैं, तो आइए जानें कैसे भारत के कुछ प्रदेशों में महिलाओं ने किस तरह से गोबर के माध्यम से अपने लिए कमाई का जरिया ढूंढ निकाला है। 

छत्तीसगढ़ में गोबर का कमाल 

छत्तीसगढ़ की बलौदा प्रदेश की महिलाएं गोबर से पेंट बना रही हैं। इससे पहले यह सभी महिलाएं दूसरे गांव में जाकर काम की तलाश करती थीं, वही अब वे सभी मिलकर गांव के गौठान में पेंट बनाकर खुद को आर्थिक तौर पर सशक्त कर रही हैं। दिलचस्प यह है कि महिलाओं के द्वारा बनाए गए पेंट की गुणवत्ता ऐसी है, जो कि सीधे तौर पर कई बड़ी पेंट कंपनी को टक्कर दे रही हैं। इस काम को अंजाम देने में मुख्य तौर पर बलौदाबाजर-भाटारपारा जिले के विकासखंड पलारी ग्राम गिर्रा में स्थित जय मां लक्ष्मी स्वंय सहायता समूह की महिलाएं शामिल हैं, हालांकि पेंट बनाने का कार्य 3 महीने पहले शुरू हुआ है। अभी तक इन महिलाओं ने मिलकर 1915 लीटर गोबर पेंट का निर्माण कार्य पूरा कर लिया है और इन सभी पेंट से महिलाओं ने लगभग 1 लाख से अधिक का आर्थिक फायदा अर्जित किया है। वाकई, महिलाओं के लिए आत्मनिर्भर बनने का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं होगा। 

देहरादून भी नहीं है पीछे 

उत्तराखंड के देहरादून में भी स्वयं सहायता ग्रुप भी सामने आ रहे हैं और महिलाओं को बहुत अधिक मौके मिल रहे हैं, यहां के सेल्फ हेल्प ग्रुप की कई महिलाएं गाय के गोबर से पेंट और दीए बनाते हैं। स्वदेश कुटुंब स्वयं सहायता समूह की महिलाएं ज्यादातर दीए बना रही हैं और अच्छा मुनाफा भी कमा रही हैं। दिवाली के मौके पर पूरे देहरादून में इन महिलाएं के दीये खूब बिकते हैं और महिलाएं इन्हें अपने घरों में खूब सजाते हैं। वर्ष 2015 में राजपुर रोड के निकट बहुत ही छोटे स्तर पर देशी गाय के गोबर से उत्पाद बनाने शुरू किए। अब इन उत्पादों को आमजन पसंद कर रहा हैं तो इनका उत्पादन भी बढ़ा दिया गया है। 

अंबाला-दिल्ली की उषा के लिए राहत का साथी बना गोबर 

अंबाला और फिर दिल्ली से संबंध रखने वालीं उषा का मुख्य पैशन नृत्य करना था, लेकिन लॉकडाउन ने उन्हें एक और प्रोफेशन को चुनने का मौका दिया, उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के गाय के गोबर से रोजगार शुरू करने के लिए दिए जा रहे प्रशिक्षण के बारे में सुना, तो उन्हें यह आइडिया आया कि वे गोबर से कुछ रचनात्मक कर सकती हैं। इसके बाद उन्होंने गोबर से उत्पाद तैयार करने के लिए जो भी जानकारी हासिल करनी थी, सारी जानकारी हासिल करने की कोशिश की, फिर जाकर गोशालाओं में काम किया और फिर नागपुर से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण लिया। उत्तराखंड और गुजरात में जाकर भी प्रशिक्षण लिए, फिर शुरुआती दिनों में खुद ही गाय का गोबर एकत्र कर अलग-अलग उत्पाद बनाने शुरू किए। बाद में इसके माध्यम से ही बड़ा कारोबार तैयार किया और गाय के गोबर से 10 लाख दीये बनाने भी शुरू किये। खास बात यह है वह दिल्ली में आकर कई महिलाओं को इसे बनाने के लिए प्रेरित करती रही हैं और उन्हें रोजगार देने का भी काम कर रही हैं। उन्होंने 100 से अधिक परिवारों को रोजगार दिया है। अब वे गोबर से गमले, मूर्ति, दीये, अगरबत्ती, खड़ाऊ और ऐसी कई चीजें बना रही हैं। 

औरंगाबाद की महिलाओं का भी है कमाल 

महाराष्ट्र के औरंगाबाद इलाके में महिलाएं कमाल का काम कर रही हैं, वहां की रहने वाली सीमा कुमारी गाय के गोबर से दवाएं बना रही हैं और अन्य प्रोडक्ट भी बना रही हैं और कई महिलाओं को रोजगार दे रही हैं, सीमा गोबर से देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाती हैं, जिसमें वह दीया, अगरबत्ती, गमला, रुद्राक्ष माला और ऐसी कई चीजें बनाती हैं और साथ में गोबर की मदद से कई जीवन रक्षक दवाएं भी बना रही हैं और मुनाफा कमा रही हैं। गौरतलब है कि वे कई सालों तक झारखण्ड में अपने प्रोजेक्ट पर काम करती रही हैं, इसके बाद उन्होंने चपरी गांव स्थित गौशाला में रह रही गायों के गोबर से प्रोडक्ट बनाने की पेशकश की। अब वे लगातार रोजगार मुहैया करा रही हैं। 

गोबर की ईंट बनीं अम्बिकापुर में रोजगार की इमारत

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में गोबर से बनी ईंट न केवल महत्वपूर्ण काम कर रही है, बल्कि इससे रोजगार के अवसर भी तैयार हो रहे हैं और खास बात यह भी है कि यह कमाल की पहचान भी स्थापित कर रहा है। गौरतलब है कि अम्बिकापुर 10 लाख की आबादी वाले शहरों में देश का दूसरा सबसे स्वच्छ शहर है, यहां पर हर दिन ही गोबर से ईंट बन रही हैं। अम्बिकापुर नगर पालिक निगम निगम में गोबर को गोधन बनाने का काम किया जा रहा है , बता दें कि पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से पहले गोबर से खाद बनाने का काम शुरू किया गया था। गौरतलब है कि शहर के घुटरापारा स्थित शहरी गौठान में महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं ये ईंट बनाने का काम कर रही हैं, जिससे महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है और महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाने में कामयाब हो रही हैं। 

 

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