चार बहने हैं, बाप रे !! कैसे होंगी इनकी शादियां, कैसे सब कुछ मैनेज करेंगे, लोगों ने ये सवाल खूब पूछे हैं, रांची में रहने वाले एके सिन्हा से, जो सरकारी कर्मचारी रहे। लेकिन एके सिन्हा ने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी चारों बेटियों को न सिर्फ खूब अच्छी तालीम दी, बल्कि सभी को खूब पढ़ाया और अपने पैरों पर खड़े रहने के लिए मुकम्मल भी बनाया। और नतीजन अदिति, मनाली, श्रुति और कीर्ति इन चार बहनों ने आपस में ऐसी बॉन्डिंग की कि वे एक दूसरे की दोस्त भी बनीं, हमराज भी और एक दूसरे की सहारा भी कि उन्हें अपने बीच किसी भाई की कमी महसूस ही नहीं हुई और रक्षाबंधन के दिन वे आपस में ही एक दूसरे को राखी बांधती हैं और खुद सेलिब्रेट करती हैं। श्रुति और कीर्ति तो जुड़वां बहनें हैं और अदिति और मनाली से छोटी हैं, इसलिए सबकी लाड़ली हैं। चारों ही बहनें, रक्षाबंधन के दिन को मिस नहीं करती हैं, एक दूसरे को राखी बांधती हैं, कीर्ति अपनी बहनों की बॉन्डिंग के बारे में बताती हैं “ जब मैंने होश संभालना शुरू किया और दुनियादारी समझी, तो मुझे इस बात का एहसास हुआ कि पापा को सब ये क्यों कहते हैं कि अरे, इतनी सारी लड़कियां हैं, कैसे करेंगे, सिन्हा साहब, लेकिन पापा ने इसकी परवाह कभी नहीं की और हम चारों को खूब पढ़ाया, आज हम चारों अपने-अपने तरीके से काम कर रही हैं। मुझे तो मेरी बहनों ने कभी किसी और की कमी महसूस होने नहीं दी, मुझे इस सोच पर ही अब हंसी आती है कि लड़का होना जरूरी था, हम चारों की बॉन्डिंग ऐसी है कि इसमें किसी और की एंट्री की जरूरत नहीं है।
कीर्ति कहती है, “ हम अपने कजिन्स भाइयों को भी राखी बांधती हैं, लेकिन हमारी अपनी राखी खास होती है, मेरी बहनें हैंड मेड राखी बनाती हैं, तो कभी कोई गिफ्ट्स भी देती हैं। मैं मेरी मां को भी इस बात का श्रेय देती हूं कि उन्होंने कभी हमारे मन में नहीं आने दिया कि भाई नहीं हैं, रक्षाबंधन के दिन हम चारों की पसंद का खाना बनता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि अच्छा है कि मैं एक प्रोग्रेसिव परिवार का हिस्सा बनीं, जहां मां और पापा ने हमें हर बात की आजादी दी, क्या गारंटी है कि भाई रहने पर हमें वह आजादी मिलती, मैं तो अपनी दोस्तों की कहानियां सुनती हूं कि उनके भाई उन पर बेवजह की पाबंदियां लगाते हैं, तो हम चारों तो ऐसे ही खुश हैं, दकियानूसी भाई होने से अच्छा है, न हो।
बहनों की बॉन्डिंग के बारे में कहती हैं, “ पहले तो रक्षाबंधन में मुझे तीनों बड़ी बहनों से खूब कमाई होती थी, अब तो हम दूर हैं, काम के सिलसिले में, लेकिन आज भी हम एक दूसरे को राखियां भेजना भूलती नहीं हैं। हम कोई भी निर्णय एक दूसरे के पूछे बगैर नहीं लेती हैं। और हम चारों की खास बात है कि हम एक दूसरे के साथ काफी एन्जॉय करती हैं। जहां तक बात है, पापा को हेल्प करने की, तो हम चारों उनके साथ खड़े हैं, मैं तो आज तक यह नहीं समझ पाई कि ऐसा क्या है, जो है हम चारों नहीं कर सकती हैं। हमें तो किसी भाई की जरूरत नहीं है, अपने पापा के लिए हम चारों, उनके चार स्तंभ हैं और हम आपस में भी एक दूसरे की खुशियों के स्तम्भ हैं। अदिति जहां एक बेंगलुरु स्थित फर्म के लिए काम करती है, कीर्ति मेकअप के क्षेत्र से जुड़ी हैं, श्रुति आईटी फील्ड से जुड़ी हुई हैं, मनाली अकेडमिक्स में हैं। उनके पिता अब रिटायर हो चुके हैं, लेकिन सभी बेटियां, पापा को किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने देती हैं। आर्थिक रूप से भी सभी खड़ी रहती हैं।
वाकई, ये बहनें इस बात की मिसाल हैं कि रक्षाबंधन में खुशियां किसी जेंडर की मोहताज नहीं हैं। वे इस दिन को ही नहीं, बल्कि अपने जीवन के हर दिन को एक दूसरे के साथ यूं ही सेलिब्रेट करेंगी।