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प्रेरणा

रक्षाबंधन स्पेशल: एक मां जिसने अपनी बेटियों को सिखाया रक्षाबंधन का असली मतलब!

शिखा शर्मा |  अगस्त 10, 2022

रक्षाबंधन का मतलब, भाई के हाथों पर ही राखी बंधेगी, यही ट्रेडिशन चली आ रही है। लेकिन सच तो यह है कि यह पर्व, सिर्फ भाइयों को ही नहीं, बहनों को भी हक देता है कि वह अपनी मर्जी से अगर अपनी बहन को राखी बांधना चाहे, तो बांध ले। ऐसी ही एक महिला हैं अमिता, जिन्होंने इस अवधारणा को तोड़ा और दोनों बेटियों को ही प्रेरित किया कि एक दूसरे को वह राखी बांधें।

एक मिडल क्लास घर की हाउस मेकर, अमिता शर्मा ने बचपन से अपने छोटे भाई की कलाई पर राखी बांधी है और हमेशा यही सोचा कि राखी का धागा भाइयों की कलाई पर ही होता है। उनकी यह सोच बस तब तक उनके साथ रही जब तक उनकी दो बेटियां नहीं हो गयी। साल 2012 में साक्षी और साल 2017 में छोटी बेटी राम्या के जन्म के बाद अचानक से अमिता के जेहन में यह बात आयी और उन्हें लगा बहनें हैं तो क्या हुआ, उन्हें एक दूसरे का ख्याल तो रखना ही है, एक दूसरे की रक्षा भी करनी है, तो वह एक दूसरे को राखी क्यों नहीं बांधती? लेकिन, इस सवाल के जवाब में उन्हें अपने परिवार से सिर्फ एक जवाब मिला- 'राखी बांधने के लिए कमजोर कलाई नहीं, भाई की मजबूत कलाई चाहिए होती है, तो तू इन्हें भाई पैदा करके दे!'

अमिता की शादी एक ऐसे घर में हुई थी, जहां के लोगों की सोच इस काफी रूढ़िवादी थी। उन्हें घर की बहू साड़ी न पहने तो ठीक है लेकिन, ड्रेस के साथ जो दुपट्टा है वो उनके सिर पर जरूर रहना चाहिए। इसी के साथ बच्चा पैदा करने का प्रेशर भी शादी के बाद से शुरू हो गया। अमिता के दो प्यारे बच्चे तो हुए लेकिन, दोनों लड़कियां। अमिता ने कहा, ‘रक्षाबंधन वाले दिन घर वालों की चार बातें तो आठ बातों में बदल जाती और मैं हमेशा सोचती कि यह गलत है लेकिन, इसे सही कैसे किया जाए, यह मैं नहीं जानती थीं। मैंने कई सालों तक खुद को कोसा भी कि आखिर मैं ही लड़का पैदा नहीं कर पाई। बच्चों की खुशी का ध्यान रखते हुए मैंने इस बीच अपनी बेटियों को सबसे छुपकर, एक दूसरे को राखी बांधने के लिए कहा। खास बात यह है कि जब भी दोनों एक दूसरे को राखी बांधती, तो मैं उनकी आंखों में एक अलग चमक देखती।’

इस छुपे हुए रक्षाबंधन के सेलिब्रेशन की उम्र कुछ ही सालों की थीं और फिर, “मैं धीरे-धीरे इस बात से परेशान रहने लगी कि अब मेरी बेटियां बड़ी हो रही हैं और उन्हें लगेगा कि 'रक्षाबंधन' ऐसे ही छुप-छुपकर मनाया जाता है। यह तो मैं गलत कर रही हूं। मुझे इसका कुछ करना चाहिए। फिर एक रक्षाबंधन के दिन मैंने हिम्मत की और अपनी बेटियों के साथ राखी-थाल लेकर सबके सामने गयी और बिना किसी से कुछ कहे मैंने अपनी बेटियों से कहा कि रक्षाबंधन, ये वो बंधन है जिसे आप दोनों ताउम्र निभाओगे। एक दूसरे का ध्यान रखना, एक दूसरे के लिए हमेशा खड़े रहना और कभी यह मत सोचना कि राखी बांधने के लिए कमजोर कलाई नहीं, भाई की मजबूत कलाई चाहिए होती है। तुम एक दूसरे की बहन और भाई दोनों हो’, अमिता ने विस्तार से अपनी बात बताई।

अमिता जिस तरह की औरत थी और जिस तरह वह इतने सालों से घर वालों की हर बात पर हामी भरते आ रही थी, उनके लिए यह एक बड़ा कदम था। खैर, अमिता ने घर वालों की बड़ी होती आंखों को नजरअंदाज किया और हमें बताया, ‘’इस समय मैं बस अपनी दोनों बेटियों साक्षी और राम्या को एक दूसरे के हाथ में राखी बांधते हुए देख रही थीं। बेटियां भी शायद यही सोच रही थी कि आज मम्मी को क्या हो गया है। इतने में मेरी बड़ी बेटी साक्षी ने एक राखी उठाई और मुझे बांधने के लिए आगे बढ़ी। उसने कहा, आप भी हमारी रक्षा करती हो मम्मी, एक राखी का बंधन आपको भी!’’

अमिता की यह कहानी शायद आपके आसपास की भी कई महिलाओं की होगी। आप अगर ऐसी किसी अमिता को जानते हैं तो यह कहानी उनसे जरूर शेयर करें।

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