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प्रेरणा

झारखंड के लातेहार में अब महिलाएं नहीं करती हैं पलायन, खोज निकाला है उपाय

टीम Her Circle |  मई 08, 2023

कुछ ऐसा हो कि महिलाओं को अपने शहर से बाहर न जाना पड़े और उनके लिए उनके जीविका के माध्यम बन जाएं तो इससे अच्छा कुछ नहीं होगा। कुछ ऐसा ही हुआ है झारखंड के लातेहार में, जहां महिलाओं को कभी अपने गांव घर को छोड़ कर पलायन कर जाना पड़ता था, लेकिन अब उन्होंने इसके लिए नए उपाय तलाश लिए हैं। दरअसल, झारखंड में रहने वाले करीब 5 लाख गरीब परिवारों की आजीविका प्रतिदिन की मेहनत और मजबूरी पर ही निर्भर है। ऐसे में उनकी जो भी कमाई होती है, उसकी 80 प्रतिशत राशि सिर्फ भोजन की व्यवस्था पर खर्च हो जाती है, ऐसे में अपने परिवार के लिए पौष्टिक आहार के बारे में सोच पाना मुमकिन ही नहीं था। जाहिर है शिक्षा के बारे में सोचना भी उनके लिए एक सपने जैसा ही था। लेकिन रांची से करीब 90 किलोमीटर दूर दामोदर पहाड़िया टोली में रहने वाले आदिम जनजाति परिवार के हालत भी तीन साल पहने तक इसी तरह की थी। लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड स्थित इस गांव में रहने वाले परिवारों को साल में छह महीने तक के लिए पलायन करना पड़ता था, क्योंकि बारिश से पहले तक वह बाकी शहरों में काम करते थे, फिर बारिश के मौसम में वापस आते थे और जो भी खर्च के लिए राशि बचती थी, उससे गुजारा करते थे। ऐसे में द नज इंस्टीट्यूट ने इस गांव में रहने वाले 11 पिछड़े गरीब परिवारों के जीवन में एक नया बदलाव लाया। खास बात यह है कि तीन साल में ही काफी सुधार आ गए हैं। ऐसे कई सारे बदलाव किये गए हैं, जैसे खेती पशु पालन कर बचत भी करने लगे हैं। लगातार महिलाएं काम करके एक दूसरे के लिए सहारा भी बन रही हैं। तीन साल में लाइव्लीहुड ग्रांट के रूप में इन्हें 17 हजार 500 रुपये की सहायता भी मिली है। पशु पालन के अलावा किचन गार्डन जैसी चीजें भी कर रही हैं और अपने परिवार का पालन पोषण कर रही हैं। इस तरह के काम करके वे 15 से 20 हजार रुपये की बचत कर रही हैं, जिसे बैंक खाता में जमा कर रही हैं। खास बात यह है कि राजस्थान, असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और मेघालय में भी इस तरह के प्रयास किये जा रहे हैं और गरीब परिवारों की मदद की जा रही है। वाकई, यह एक अनोखी पहल है और ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को इससे जरूर लाभ होगा।

*Image used is only for representation of the story

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