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0-18 साल के बच्चों के स्वयं के विशिष्ट विकास मानकों को विकसित करने में अग्रसर है भारत सरकार

टीम Her Circle |  दिसंबर 07, 2022

भारत सरकार ने पहली बार बच्चों के लिए देश-विशिष्ट विकास मानकों को विकसित करने के लिए कदम उठाए हैं, इस चिंता के बीच कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित वजन और ऊंचाई के संदर्भ भारतीय संदर्भ में उपयुक्त नहीं हो सकते हैं।

गौरतलब है कि बाल रोग विशेषज्ञ जन्म से ही बच्चों के वजन और ऊंचाई की सूची बनाते हैं, जिससे बाद में यह आकलन करने में आसानी होती है कि क्या बच्चा अच्छी तरह से बढ़ रहा है या उसका विकास हो रहा है या नहीं और वह अपनी उम्र के अन्य बच्चों की तुलना में कैसा प्रदर्शन कर रहा है।

इन मापों, जिनमें वजन, ऊंचाई, ऊंचाई के लिए वजन और बॉडी मास इंडेक्स शामिल हैं, इनको कई सर्वेक्षणों और अध्ययनों में भी शामिल किया गया है, जिसमें बच्चों के बीच कुपोषण से जुड़े मापदंडों का पता लगाने के लिए सरकारों द्वारा किए गए अध्ययन भी शामिल हैं।

ऐसे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को 0-18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मानक विकसित करने का निर्देश दिया है। आईसीएमआर (ICMR) ने वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ और शोधकर्ता डॉ एचपीएस सचदेव की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय समिति का गठन किया है। पैनल के अन्य सदस्यों में बाल रोग विशेषज्ञ, पोषण विशेषज्ञ, बायोस्टैटिस्टिशियन और मंत्रालयों और सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के प्रतिनिधि शामिल किया गया है। 

ऐसे में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि कई अध्ययनों के माध्यम से जो बात सामने आई है कि बच्चों में विकास के पैटर्न आनुवंशिकी के साथ-साथ पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होते हैं। 

उन्होंने यह भी कहा है कि भारतीय बच्चों पर डब्ल्यूएचओ चार्ट को अपनाना उचित नहीं हो सकता है, क्योंकि इसे आनुवंशिकी के बजाय मुख्य रूप से पर्यावरणीय कारकों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है।

बता दें कि वर्ष 2006 का विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) विकास मानक मल्टी ग्रोथ रेफरेंस स्टडी (MGRS) पर आधारित है, जिसे बच्चों में स्वस्थ ऊंचाई और वजन के लिए एक सार्वभौमिक मानक माना जाता है।

इस विकास मानक से पर्याप्त विचलन का उपयोग तीन महत्वपूर्ण संकेतकों को परिभाषित करने के लिए किया जाता है: स्टंटिंग (उम्र के लिए कम ऊंचाई), वेस्टिंग (ऊंचाई के लिए कम वजन), और शारीरिक रूप से कमजोर (कम वजन वाले) । गौरतलब है कि किसी आबादी में कुपोषण के विभिन्न रूपों की व्यापकता का आकलन करने के लिए इन तीन संकेतकों का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। उनका उपयोग सतत विकास लक्ष्यों जैसे अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों में किया जाता है और भारत भी अपने पोषण अभियान या पोषण कार्यक्रम में इन संदर्भ बिंदुओं का उपयोग करता है।

डब्ल्यूएचओ मानकों (एनएफएचएस 1 और 2 द्वारा उपयोग किए जाने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य सांख्यिकी केंद्र, यूएस द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विकास संदर्भ) का उपयोग करके पांच वर्ष से कम उम्र के भारतीय बच्चों में पोषण की स्थिति में बदलाव के आकलन के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (1992-2016) के चार दौर का विश्लेषण भी दिखाया गया है कि अब भी काफी सुधार की जरूरत है। 

बता दें कि इस भाषा में जानकारों का मानना है कि भारतीय बच्चों के लिए डब्ल्यूएचओ के विकास मानकों का उपयोग करने के बारे में सोचा जाना चाहिए, लेकिन कुपोषण की समस्या को कम न करने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए।

*Image used is only for represenation of the story

 

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