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हिमाचल प्रदेश की महिलाएं बना रही हैं देवदार की इको फ्रेंडली राखियां

टीम हर सर्कल |  अगस्त 05, 2022

ऐसे दौर में जब हर तरफ ग्लोबल वार्मिंग की चेतवानी दी जा रही है। ऐसे में सजग रहने के साथ-साथ, हम सबका कर्तव्य है कि हम छोटे ही सही, लेकिन प्रयास करें, अपनी धरती को बचाने के लिए, ऐसे में हमारे लिए एक शानदार मिसाल बनती हैं, हिमाचल प्रदेश की महिलाएं, जी हां, देखा जाए, तो वर्तमान दौर में भारत के कई ग्रामीण इलाकों की महिलाएं, कोई कसर नहीं छोड़ रही है पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए, वे छोटे-छोटे ही सही, लेकिन कदम उठा रही हैं और अपना योगदान दे रही हैं। ऐसे में, इस साल रक्षाबंधन के अवसर पर, हिमाचल प्रदेश की महिलाओं ने पूरी तरह से ईको-फ्रेंड्रली रास्ता इख्तियार किया है।

इस बार उन्होंने देवदार की सूखी पत्तियों से राखी बनाने का कदम उठाया है। यह उनकी रचनात्मक सोच ही कही जायेगी कि उन्होंने कुछ ऐसा सोचा है। हिमाचल प्रदेश के कई ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने यह काम शुरू किया है।  खास बात यह है कि इसमें उन्हें कारवां सोसायटी और हिमाचल प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन का भी साथ मिला है। दोनों ने ही संयुक्त रूप से मिल कर, इस महिलाओं को सहयोग किया है। संयुक्त रूप से यह संस्थाएं इन्हें देवदार के पत्तों से राखी बनाने की ट्रेनिंग दे रही हैं। यही नहीं, यहां उन्हें रक्षाबंधन पर मिलने वाले और भी गिफ्ट आयटम्स बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है।

इस संस्था ने पहले भी वर्ष 2017 में 22 महिलाओं को ट्रेनिंग दी थी। इसके बाद से, तब से लेकर अबतक लगभग 500 महिलाओं ने इस राखी मेकिंग ट्रेनिंग में हिस्सा लिया है और वे लगातार इको फ्रेंडली राखियां बना रही हैं।

एचआईपीए के आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 11 प्रतिशत देवदार पेड़, जंगल में लगी आग में जल जाते हैं, लेकिन जबसे इन महिलाओं ने यह काम शुरू किया है, बर्बाद हुईं देवदार की नीडल्स पत्तियां सोलन और शिमला इलाके में खूब इस्तेमाल होने लगी हैं।

खास बात यह भी है कि महिलाएं भी पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए, इस छोटे से योगदान से खुश हैं। उनकी लोगों से अपील है कि उनकी राखियां खरीदी जाएं। वे चाहती हैं कि आगे भी ऐसे प्रयास करके और भी गिफ्ट आयटम्स बनाये जाएं, तो बेहतर होगा। इससे इन्हें आत्म-निर्भर बनने में काफी मदद मिलेगी।

रिपोर्ट्स के अनुसार, वहां की महिलाओं का मानना है कि हमें पहले इसके बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी, लेकिन कोविड लॉक डाउन 19 के दौरान उन्हें जो एचआईपीए में ट्रेनिंग मिली, इसके बाद से वह लगातार इस काम को कर रही हैं।  देवदार की इन नीडल्स वाली राखियों के साथ, महिलाएं इसे और आकर्षक बनाने के लिए, इसमें बीज का भी इस्तेमाल कर रही हैं। कई महिलाओं को मानना है कि ऐसी ट्रेनिंग के बाद, वे खुद को आत्म-निर्भर बनाने का प्रयास करने में सफल हो रही हैं, कई महिलाओं को छोटे ही सही,लेकिन खुद के पैर पर खड़े होने का मौका मिल रहा है और वे सभी इसलिए इस तरह के प्रयासों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार, महिलाओं ने देवदार के नीडल्स पत्तियों से प्रोडक्ट्स बना कर, लगभग 84 लाख, अब तक कमा लिए हैं। यही वजह है कि यह काम लगातार बढ़ रहा है और महिलाएं इसे करना पसंद भी कर रही हैं।

वाकई, छोटे ही सही, ऐसे प्रयासों से ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को एक नया आकाश मिल रहा है और उनका हौसला भी बढ़ रहा है। साथ ही यह बड़ा योगदान है कि महिलाएं पर्यावरण को भी बचाने की कोशिश कर रही हैं।

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