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वायु प्रदूषण के खिलाफ झारखंड के लोहरदगा जिले की घरेलू महिलाएं उठा रही हैं ठोस कदम

टीम Her Circle |  अक्टूबर 21, 2022

दिवाली आने वाली है और इस वक्त सबसे बड़ी चिंता जो होती है, वह यही होती है कि इस वक्त वायु प्रदूषण बुरी तरह से हावी होता है वातावरण में। ट्रैफिक, वाहन के अलावा वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण हमारे घरों में जलने वाले ईंधन भी होते हैं, ऐसे में झारखंड की महिलाओं ने वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जो एक छोटा-सा प्रयास भी किया है, वह काफी खास और सराहनीय हैं। जी हां, एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के लोहरदगा जिले में हेंडलासो गांव है, जहां की महिलाओं ने वायु प्रदूषण के खिलाफ एक नयी पहल की है। यहां की महिलाएं, पहले इस बात से अवगत नहीं थीं कि किस तरह वे जो घर में खाना बना रही हैं, वह उनकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। जब वहां की महिलाओं ने यह बात समझी कि उनके किचन के चूल्हे से निकलने वाले धुएं के कारण उन्हें आंखों में सूजन और सांस लेने में तकलीफ जैसी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, तो उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ, उन्होंने कहा कि वे कभी इस बात के बारे में नहीं सोच पायीं कि उनके खाने बनाते हुए भी उन्हें ऐसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि दो वर्ष पूर्व जब वायु प्रदूषण एयर जलवायु परिवर्तन पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, तो उन्हें यह बात पता चली कि कैसे घरेलू काम करते हुए भी वायु प्रदूषण हो सकता है। 

गौरतलब है कि इस कार्यक्रम के बाद, वहां की महिलाओं में अच्छी तरह से जागरूकता फैली और फिर उन्हें घर में रहते हुए किस तरह से वायु की गुणवत्ता मापनी है और प्रदूषण के प्रभाव को समझना है, उस पर सभी घरेलू महिलाओं ने काम किया, साथ ही प्रदूषण के प्रभाव को कुछ हद तक कम करने के तरीकों पर प्रशिक्षित किया गया। उस वक्त हर महिला को वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरण भी दिया गया था। 

वहां की महिलाओं ने इस बात पर गौर किया कि जब वे चूल्हा जलाया करती थीं और इस उपकरण से उसे मापा, तो हवा की गुणवत्ता में पीएम यानी प्रदूषक कण पीएम की संख्या 2.5 की संख्या लगभग 900 ug /m3 (यूजी/ एम 3)थी, जबकि सामान्य सीमा 40 ug /m3 (यूजी/ एम 3) होनी चाहिए थी। इसके बाद, उन्हें समझ आया कि यह रेंज उन सभी के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, इसके बाद वहां की कुछ महिलाओं ने प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए, रसोई में एक सही वेंटिलेशन के लिए खिड़की बनाया और चूल्हे में प्लास्टिक या कागज जैसी चीजों को जलाना बंद कर दिया। वर्तमान में वहां की महिलाएं अब खाना पकाने के लिए एलपीजी स्टोव और चूल्हे दोनों का उपयोग करती हैं। 

बता दें कि इस जागरूकता अभियान में सुमन वर्मा कुजरा, जो इसी गांव में रहने वाली हैं और इन्होंने इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है, अब वह खुद एक झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी के तहत एक स्वयं सहायता समूह चलाती हैं, जो राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन परियोजनाओं के कार्यान्वन के लिए काम करने वाली एक एजेंसी है। अब तक उन्होंने एनजीओ के सहयोग से लगभग 400 महिलाओं से संपर्क किया है, जो कि प्रदूषण के खिलाफ अभियान में शामिल भी हुई हैं। सुमन के अलावा और भी कई महिलाओं ने जागरूकता फैलाने में साथ दिया है और सभी अपने आस-पास के गांव का प्रतिनिधित्व भी कर रही हैं। 

इस बारे में होप की संस्थापक मनोरमा एक्का ने भी महत्वपूर्ण बात कही है कि हम ग्रामीण क्षेत्रों में घरों में जलने वाले चूल्हे के बारे में कभी भी बातचीत नहीं करते हैं, हम अमूनन वायु प्रदूषण पर बात करते हुए शहरी क्षेत्रों के कारखानों और वाहनों के बारे में ही बातें करते हैं।  लेकिन घरेलू वायु प्रदूषण पर शायद ही कोई चर्चा होती है, ऐसे में कई महिलाएं, जो किचन में खाना पकाती हैं, इस पर ध्यान नहीं दे पाती हैं। इसलिए घरेलू महिलाओं को जागरूक करना बेहद जरूरी है और हमने इसलिए यह ठोस कदम उठाये हैं। उनका यह भी कहना है कि अब भी ग्रामीण इलाकों में एलपीजी सिलेंडर की उपलब्धता कम है, क्योंकि अब भी कई घरों में लकड़ी या कोयले का उपयोग हो रहा है, जिससे घरों में भारी प्रदूषण हो रहा है। 

उन्होंने मीडिया से बातचीत में यह भी बताया है कि अब तक लोहरदगा में 4,000 से अधिक महिलाओं को घरेलू वायु प्रदूषण के बारे में जागरूक किया जा चुका है और उनमें से लगभग 1000 ने प्रदूषण कम करने के तरीकों को अपनाया भी है। यहां की महिलाओं को धुएं से मुक्त चूल्हे, रसोई में उचित खिड़कियां और हवादार जगहों पर खाना बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

गौरतलब है कि लोहरदगा के बाद, अब इस मिशन को बोकारो और धनबाद तक ले जाने की गुंजाइश है। 

बता दें कि इस विषय के जानकारों का मानना है कि भारत के सामने आने वाली बड़ी पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने का प्रयास करने वाले संगठन एएसएआर (ASAR) और झारखंड स्थित एनजीओ द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन तक महिलाओं की पहुंच के रास्ते में कई बाधाएं हैं। ऐसे में अगर ग्रामीण महिलाओं तक, स्वच्छ ईंधन पर सब्सिडी देना और व्यवहार परिवर्तन अभियानों के माध्यम से जागरूकता पैदा करना, सौर आधारित खाना पकाने जैसे फायदेमंद और किफायती समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिए और निश्चित तौर पर एक छोटी पहल यहां की महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए कुछ हद तक तो जरूर वरदान साबित हो रहा है।

*Image used is only for representation of story

 

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