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प्रेरणा

अरुणाचल के अपातानी कर रहे हैं एक अनूठी एकीकृत खेती पद्धति का उपयोग, पर्यावरण संरक्षण की अनोखी मिसाल

टीम Her Circle |  फ़रवरी 17, 2023

अरुणाचल प्रदेश के लोग लगातार अपनी संस्कृति को बचाने और प्रकृति के करीब रहने की कोशिशों में जुटे हुए हैं, वे लगातार एक से बढ़ कर एक प्रयास करते रहते हैं। ऐसे में एक खबर जो नयी आई है कि उन्होंने एक बेहद अनोखा तरीका ढूंढ निकाला है कि वह प्रकृति के साथ अपना साथ बरकरार रखें। दरअसल, पूर्वी हिमालय के प्रमुख जातीय समूहों में से एक अपातानी, कृषि के एक विशिष्ट रूप का अभ्यास करते हैं, जहां चावल उगाया जा रहा है और मछली पालन का काम किया जा रहा है। 

ये किसान 1960 के दशक से अरुणाचल प्रदेश के अपने पहाड़ी इलाकों में एकीकृत चावल-मछली का उत्पादन कर रहे हैं। अपातानी पठार में चावल की खेती और मछली पालन का जो काम किया जा रहा , वह  संभावित क्षेत्र नैपिंग, याचुली, जीरो-द्वितीय, पॉलिन और कोलोरियांग में हो रही है। अपातानी मुख्य रूप से चावल की तीन किस्मों का उपयोग करते हैं, एमियो, पायपे और मायपिया। 

अगर अपातानी पठार के कुल क्षेत्रफल की बात करें, तो यह 10,135 वर्ग किलोमीटर है, जहां चावल की खेती और मछली पालन में 715.7 हेक्टेयर में से लगभग 592.0 हेक्टेयर (हेक्टेयर) सिंचित चावल भूमि में की जाती है। अपातानी पठार विविध संस्कृतियों की भूमि है। यह बात उल्लेखनीय है कि अपातानी के प्रमुख त्योहार म्योको, द्री, यापुंग और मुरुंग हैं। यहां के लोगों का मानना ​​है कि ये पारंपरिक त्योहार बेहतर उत्पादकता और खुशहाली सुनिश्चित करते हैं। इस जगह अच्छे उत्पादन की वजह यह भी है कि इस पठार में ग्रीष्म ऋतु में पर्याप्त वर्षा होती है। मिट्टी, दोमट मिट्टी की पारगम्यता और जल-धारण क्षमता इस अनूठी कृषि तकनीक का समर्थन करती है।

यह एकीकृत चावल और मछली का उत्पादन कम लागत और पर्यावरण के अनुकूल किया जाने वाला तरीका है। यह भी एक जरूरी जानकारी है कि ये स्टॉक की गई मछलियां व्यावहारिक रूप से चावल के खेतों के प्राकृतिक खाद्य स्रोतों पर निर्भर करती हैं और इसलिए मछली की खाद्य पूर्ति आसानी से हो जाती है। 

कई बार किसान खेती को अधिक टिकाऊ और जैविक बनाने के लिए घरेलू और कृषि अपशिष्ट और घरेलू पशुओं जैसे सूअर, गाय, मिथुन (बोस फ्रंटालिस) और बकरियों के मल का उपयोग करते हैं। इसके अलावा, एजोला और लेम्ना भी नाइट्रोजन फिक्सर के रूप में खेत के पानी में उगाए जाते हैं। खेतों में उगाए जाने वाले जैविक खाद्य पदार्थ मछलियों को खिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन उच्च ऊंचाई वाले चावल के खेतों में पानी के स्रोत पहाड़ से निकलने वाले झरने हैं और मानसून के मौसम में बारिश के पानी का जम कर उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, यहां दो आउटलेट पाइपों का उपयोग करके मिट्टी के सिंचाई चैनलों के नेटवर्क से पानी वितरित करने के लिए बांस के पाइप का उपयोग किया जा रहा है। 

उल्लेखनीय चावल की खेती के लिए खेतों को तैयार करते समय पुरुष और महिलाएं अलग-अलग कृषि कार्य करते हैं। और मछली पालन के दौरान, महिलाएं प्रमुख कार्यबल के रूप में भाग लेती हैं। साथ ही खेती के लिए प्राचीन और पुराने जमाने की कृषि तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इससे साफ जाहिर होता है कि अब भी इनकी कोशिश यही है कि किस तरह से पर्यावरण को संरक्षित करते हुए खेती की जा सके, क्योंकि अब भी यहां के किसान आधुनिकता से कोसों दूर हैं और उनके लिए आधुनिक मशीन का इस्तेमाल करना बहुत अधिक तक संभव नहीं है। स्टॉक की गई मछलियों को एक मौसम में दो बार निकाला जाता है। मुख्य रूप से जुलाई और अक्टूबर के मध्य में की जाती है। लेकिन चावल की कटाई सितंबर के अंत से अक्टूबर के मध्य तक की जाती है, मौसम में एक बार ही की जाती है।

वाकई, ऐसे पर्यावरण अनुकूल खेती करने और मछली पालन के तरीकों को अपनाना बेहद जरूरी है, ताकि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक जंग लड़ी जाए।

*Image used is only for representation of the story

 

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