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दिल्ली में 86 प्रतिशत सफाई कर्मचारियों के फेफड़े खराब, महिलाएं हैं अधिक प्रभावित : सर्वेक्षण

टीम Her Circle |  जून 29, 2023

दिल्ली में कचरा और गंदगी की सफाई करने वाले कर्मचारियों की स्थिति अच्छी नहीं है, खासतौर से महिलाओं को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है, इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि महिलाएं अधिक प्रदूषण और गंदगी के सम्पर्क में आती हैं और इससे उन्हें फेफड़े से जुड़ीं कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। हाल ही में एक एनजीओ द्वारा किये गए सर्वेक्षण से ये बात सामने आई है। जून महीने की शुरुआत में यह आंकड़े सार्वजनिक किए गए थे। गौरतलब है कि इन आंकड़ों के अध्ययन के लिए तीन आवश्यक व्यावसायिक समूहों, कचरा बीनने वाले, नगर निगम के सफाई कर्मचारी और सुरक्षा गार्ड के लिए वायु प्रदूषण और श्वसन संबंधी बीमारी की घटनाओं के बीच संबंधों का अध्ययन किया गया। सर्वेक्षण के लिए व्यावसायिक समूहों का चयन काम पर धूल, कचरा, कण पदार्थ और जहरीली गैसों के संपर्क में आकर अपना काम करने वाले लोगों को शामिल करने के आधार पर था। 

अध्ययन से पता चला कि पुरुषों की तुलना में महिला सफाई कर्मचारियों के फेफड़ों के खराब होने की संभावना छह गुना अधिक थी। कचरा बीनने वाली महिलाओं में उनके पुरुष सहकर्मियों की तुलना करें, तो फेफड़ों के खराब कामकाज की संभावना लगभग चार गुना अधिक पाई गयी। हालांकि इस अध्ययन में पूर्ण रूप से इसका कोई ठोस कारण नहीं बताया गया है, लेकिन सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषक का मानना है कि वैश्विक शोध से पता चलता है कि महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग इसके प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, खासतौर से वायु प्रदूषण के कारण। 

गौरतलब है कि प्रतिभागियों द्वारा एक प्रश्नावली का उपयोग करके साइट पर सर्वेक्षण किया गया, उसके बाद एक पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट के आधार पर परीक्षण किया गया, यह जो पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट है, किसी व्यक्ति के फेफड़ों की ताकत का परीक्षण करता है। पिछले साल आठ महीनों में आयोजित 'अनफेयर क्वालिटी' शीर्षक वाले अध्ययन में उपर्युक्त प्रत्येक श्रेणी में 100 प्रतिभागियों का सर्वेक्षण किया गया। अध्ययन में यह भी पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल 97 प्रतिशत सफाई कर्मचारियों, 95 प्रतिशत कचरा बीनने वालों और 82 प्रतिशत सुरक्षा गार्डों ने अपने काम के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने की सूचना दी। इसके अतिरिक्त, 60 प्रतिशत से अधिक सफाई कर्मचारी, 50 प्रतिशत कचरा बीनने वाले और 30 प्रतिशत सुरक्षा गार्ड पीपीई किट के बारे में अनजान थे, जो वायु प्रदूषण के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं।

सभी तीन समूहों में असामान्य पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट के परिणाम दर्ज किए गए, सर्वेक्षण में शामिल 86 प्रतिशत सफाई कर्मचारियों और सुरक्षा गार्डों में लक्षण दिखे, इसके बाद 75 प्रतिशत कचरा बीनने वालों में लक्षण दिखे। यह नियंत्रण समूह के निष्कर्षों के विपरीत है, जहां केवल 45 प्रतिशत प्रतिभागियों के फेफड़े असामान्य थे। बता दें कि रिपोर्ट में इन बाहरी श्रमिकों की दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संचालन में प्रणालीगत बदलाव का सुझाव देती है। इनमें स्वच्छ भारत मिशन द्वारा व्यावसायिक स्वास्थ्य सुरक्षा पर दिशानिर्देश जारी करना, बाहरी श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य देखभाल तक बेहतर पहुंच और श्रमिकों को ऐसा करने से रोकने के लिए कचरा जलाने की पहचान करने के लिए ड्रोन का उपयोग करना आदि शामिल हैं।

*Image used is only for representation of the story

 

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