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प्रेरणा

आजादी से पहले इन महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने भरी आजाद उड़ान, बन गईं प्रेरणा

प्राची |  जून 12, 2024

जब जुल्म होता है, तो स्वाभिमान की बात यही है कि उठो और कहो कि यह आज बंद होगा, क्योंकि न्याय मेरा अधिकार है। यह कथन है महिला स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू का। केवल सरोजिनी नायडू ही नहीं, बल्कि भारत की आजादी में अपनी मौजूदगी से मजबूत कड़ी कई महिलाएं साबित हुई हैं। उल्लेखनीय है कि देश की आजादी के राह में जितनी भी महिलाएं शामिल हुई हैं, उन सभी ने आजाद उड़ान के लिए शिक्षा के महत्व को समझाया है। यहां तक शिक्षा की मांग की है और महिलाओं को यह सीख दी है कि आजादी उनका असली गहना है और शिक्षा उनका आत्म-सम्मान है। आइए जानते हैं ऐसी महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जिनका जीवन महिलाओं के लिए हमेशा सीख साबित हुआ है।

रानी लक्ष्मीबाई 

साहस, शौर्य और वीरता का परिचय रानी लक्ष्मीबाई से ही होता है। 18 जून 1858 को ग्वालियर में शहीद हुई रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान की गाथा हर कोई जानता है, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के कई अहम पहलू हैं, जिनसे हर महिला से सीख लेने की जरूरत है। रानी लक्ष्मीबाई के बेटे का निधन बहुत कम उम्र में हो गया। इसके बाद भी उन्होंने जीवन से हार नहीं मानी और 5 साल के बालक को गोद लिया। पति राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी ने राज्य संभाला और अपने किले के अंदर व्यायामशाला का निर्माण करवाया। घुड़सवारी भी सीखी। महिलाओं की सेना तैयार की। 

मिलती है ये सीख

आजादी की सिपाही रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से महिलाओं को यह सीख लेनी चाहिए कि हालात आपके जीवन को गंभीर चोट पहुंचा सकती हैं, लेकिन हार नहीं मानते हुए कैसे खुद को मजबूती से खड़ा कर जीवन का युद्ध लड़ना है। तभी तो कहा जाता है कि खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। 

सावित्रीबाई फुले

भारत की नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, शिक्षक और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले को समाज का कड़ा विरोध और अवहेलना झेलनी पड़ी। 18 वीं सदी में, जहां महिलाओं का पढ़ना गलत माना जाता था, उस वक्त वो स्कूल पढ़ने जाती थीं, तो लोग उन पर पत्थर फेंकते थे, लेकिन वे कभी भी अपने मार्ग से भटकी नहीं और उन्होंने 1848 में बालिकाओं के लिए विद्यालय की स्थापना की। शादी के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। 

मिलती है ये सीख

सावित्रीबाई फुले का जीवन हमें हर कदम पर यह सीख देता है कि खुद को शिक्षित करना कितना जरूरी है। फिर चाहे वह उम्र के किसी भी पड़ाव पर क्यों न हो, आपको मराठी में कहावत, तो याद होगी कि  ‘मुलगी शिकली प्रगति झाली’।

सरोजिनी नायडू

सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहने के साथ एक महान कवयित्री भी रही हैं। भारतीय महिलाओं के लिए वे एक आदर्श रही हैं। महात्मा गांधी से मुलाकात के बाद उन्होंने अपनी कविताओं में क्रांति और देश प्रेम को जगह दी। इसके बाद पूरा देश घूम कर उन्होंने आजादी की मसाल जलायी। खासतौर पर महिलाओं को आजादी का मतलब समझाया। कई महिलाओं को उन्होंने घर से बाहर निकलकर आजादी की लड़ाई में आगे आना सिखाया। उनके इसी कार्य की वजह से उनके जन्म को महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वे नमक मार्च का भी हिस्सा रही हैं। एक पत्नी और मां होने के साथ भी उन्होंने अपने व्यक्तित्व को हमेशा सबसे ऊपर रखा और अपनी पहचान को अपनी कलम के जरिए जिंदा रखा है। 

मिलती है ये सीख

सरोजिनी नायडू का जीवन हमें यह सीख देता है कि महिला किसी भी रूप में अपनी ताकत और शक्ति का परिचय दे सकती है, फिर चाहे वह कलम उठाकर क्रांति लाना हो या फिर सीमा पर दुश्मनों से लड़ना क्यों न हो। 

अरुणा आसफ अली

भगत सिंह जिंदाबाद के नारे जेल में लगाने वालीं अरुणा आसफ अली, भारत छोड़ो आंदोलन की नायिका रही हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनकी भूमिका इस कदर रही है कि कई बार उन्हें भूमिगत रहना पड़ता था। बिना किसी को भनक लगे वो रात के अंधेंरे में घर आती थीं और चुपचाप चली जाती थीं। स्वभाव से बेहद मधुर और औरतों के प्रति उनके मन में करुणा रहती थी, वहीं दूसरी तरफ उन्हें स्वाधीनता संग्राम की ग्रांड ओल्ड लेडी भी पुकारा जाता था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें आवारा बताकर जेल में बंद कर दिया था। इसके साथ उन्होंने देश के लिए समर्पित कई मासिक पत्रिकाओं का भी संचालन किया। निडर होकर उन्होंने अपना जीवन जिया। उन्हें कई बार यह भी सलाह दी गई कि वे अंग्रेजों की गोली का निशाना बन सकती हैं, लेकिन वे बेखौफ होकर देश के लिए समर्पित रही हैं।

मिलती है ये सीख

अरुणा आसिफ अली के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि महिलाओं को निडरता से अपने जीवन के हर लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। 

उषा मेहता

महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में उषा मेहता ने अहम भूमिका निभाई है। उल्लेखनीय है कि 8 साल की उम्र में 1928 में उन्होंने पहली बार साइमन आयोग के खिलाफ विद्रोह में भाग लिया था। यहां तक कि अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने खुफिया तौर पर रेडियो भी चलाया था। एक बार इसी तरह रेडियो कार्यक्रम के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और 4 साल की जेल भी हुई थी। नमक सत्याग्रह के दौरान वे अपने घर में समुद्र का पानी लाती थी और उससे नमक भी पैदा करती थीं। आंदोलन के दौरान और उसके बाद भी उषा मेहता ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 

मिलती है ये सीख

वाकई, देखा जाए तो ऊषा मेहता के साथ बाकी की महिला स्वतंत्रता सेनानियों नें समाज के साथ महिलाओं को शिक्षित होने और अपने भविष्य की रचना खुद के हाथों से पूरे आत्मविश्वास के साथ करने की सीख दी है। आजादी के 75वें साल पूरे होने के बाद भी आज हम सभी को शिक्षा के महत्व को समझना जरूरी है। शिक्षा के बलबूते महिलाएं जागरूक होने के साथ खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत कर सकती हैं। खुद को ऊंची उड़ान दे सकती हैं।

 

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