‘कभी जो लोग लेडी बाउंसर के यूनिफॉर्म में मजाक उड़ाते थे, अब सम्मान से बात करते हैं ‘
अमूमन नारी को किताबों में तो हम शक्ति की उपाधि तो दे देते हैं, लेकिन बात जब भी पराक्रम दिखाने की होती है और अपनी शक्ति के प्रदर्शन की आती है, तो कई बार उन्हें कम आंक लिया जाता है, यह एक मानसिकता है कि बॉडी बिल्डिंग जैसे काम, बाउंसर के रूप में काम करना महिलाओं के लिए कठिन काम है। लेकिन हाल ही में बबली बाउंसर फिल्म आयी, जो उन महिला बाउंसर से प्रभावित है, जो लंबे समय से लेडी बाउंसर के रूप में अपने पराक्रम को दर्शा रही हैं और लोगों की जुबान पर ताले लगवा रही हैं, जो यह कहते हैं कि लड़कियों के लिए यह काम करना मुश्किल है। हमने बात की है एक ऐसी ही महिला बाउंसर दीपा परब से, जिन्होंने न सिर्फ खुद को इस काम में आत्म-निर्भर बनाया है, बल्कि वह कई सारी लड़कियों को भी अपने ट्रेनिंग ग्रुप ‘रंगरागिनी’ के माध्यम से बाउंसर बनाने की ट्रेनिंग तो देती ही हैं, साथ ही उनके लिए रोजगार के भी माध्यम खोल रही हैं। आइए जानें, उनके बारे में विस्तार से।
हमेशा से पुलिस में जाना चाहती थी
दीपा बताती हैं कि वह हमेशा से पुलिस बनना चाहती थीं। वह कहती हैं मेरा जो ग्रुप है, उसका पंजीकरण अभी नहीं हुआ है, लेकिन मैं यहां लड़की को बिना किसी फीस के ही अपना काम सिखाती हूं। मैं बचपन से ही पुलिस की छवि में खुद को देखा करती थी। मैंने कबीर बेदी को अपना आदर्श माना है हमेशा। लेकिन फिर जब मैं पुलिस में नहीं जा पायी, मेरे परिवार की वजह से, तो मेरे बकेट लिस्ट में था कि मुझे कुछ तो अलग करना है। मैंने फिर मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की तरफ रुख किया, यहां पर फिल्में की, बतौर मेकअप आर्टिस्ट। वहां मुझे ‘इंदु सरकार’ नाम की फिल्म में मुझे कांस्टेबल बनने का मौका मिला, इसी बहाने मुझे लगा कि एक सपना तो पूरा हुआ, रील लाइफ में ही सही, फिर मैंने वहां कुछ आदमियों को देखा, सेलेब्स के साथ, वह ब्लैक कपड़े में थे। फिर मैंने उनके काम को समझा और पूरा तरीका समझा कि किस तरह से सेलेब्स को वे कवर करते थे। मुझे साइड में रहने को कहा गया, तो मैंने उनसे पूछा कि मुझे क्यों नहीं दिया गया यह काम, तो वहां सबने बोला आसान काम नहीं है, लड़कियों से नहीं होगा। फिर मुझे यह बात अटकी। मैंने तय किया कि मैं इस क्षेत्र में काम करूंगी।
लड़कियां क्यों नहीं कर सकती हैं ये सब
दीपा कहती हैं कि कई लोगों ने उन्हें यह कह कर रोका था कि लड़कियां ये सब काम नहीं कर पाएंगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वह कहती हैं मैंने अपने लड़कियों का ग्रुप बनाया, मैंने तय किया कि हम दर्शाएंगे कि हम कर सकते हैं। धीरे-धीरे हमारा काम अच्छा चल गया, लोगों का प्यार मिलता गया, और अब सेक्योरिटी एजेंसी भी महिला बाउंसर को रखने लगे हैं। पहले लड़कियों को दो हजार मिलते थे, अब वे लड़किया 15 से 20 हजार कमा रही हैं और कई अपना पर्सनल बाउंसर का भी काम कर रही हैं। दीपा कहती हैं शुरुआत में लोगों को यही लगता था कि हम शारीरिक क्षमता में कहीं न कहीं पुरुषों से काफी पीछे हैं। लेकिन मेरे ग्रुप और लड़कियों ने इन बातों को झूठा साबित किया। मैं झुग्गी-झोपड़ी से लड़कियों को बुलाती हूं। मैं ऐसी महिलाएं जिनके घर में वह आय की स्रोत हैं, उन्हें चुनती हूं।
किसी को बांध कर नहीं रखती हूं
दीपा कहती हैं कि मैं ट्रेनिंग के बाद, किसी को रोकती नहीं हैं। जब ट्रेनिंग पूरी हो जाती है और वह कुछ होना पर्सनल करना चाहती हैं, तो मैं उन्हें रोकती नहीं हूं। लगभग 600 से ज्यादा लड़कियां इस काम में हैं, जो मेरे साथ ट्रेनिंग कर चुकी हैं, अब तो हम सर्कल जैसा ही काम करते हैं। मैं फोकस करती हूं कि लाचार महिलाओं की ताकत बनूं, जिनका तलाक हो गया है या पति नहीं हैं या घर पर कोई और नहीं कमाने वाले, उन्हें इस काम के लिए ट्रेनिंग देती हूं।
हर दिन है चुनौती
दीपा कहती हैं कि उन्हें लड़कियों के परिवार वालों को नाइट शिफ्ट के लिए, फिर काम के लिए अधिक देर रुकने के लिए यह सबकुछ के लिए काफी समझाना पड़ता है और हर दिन ही समझाना पड़ता है, यह हर दिन की एक चुनौती है। फिर वे लोग समय पर घर पहुंच जाएं, इस बात का भी हमलोग पूरा ध्यान रखते हैं।
लड़के उड़ाते थे मजाक
दीपा कहती हैं कि शुरू में हमारे काम को मजाक में ही लिया जाता था, जहां जाते थे, वहां के लोग कई बार हंस देते थे, लेकिन मैंने लड़कियों को यही समझाया है कि किसी की बातों पर ध्यान नहीं देना है और अपना काम करना है, काम को बोलने देना है। और धीरे-धीरे अपने काम पर फोकस करते हुए, अब पार्टियों में लोग हमारे साथ तस्वीरें भी लेते हैं और हमारे हौसले को बढ़ाते हैं, तो काफी तसल्ली मिलती है। साथ ही मैं यह भी सिखाती हूं कि मेरा मानना है कि हम सबको एक बात याद रखनी है कि दूसरों की रक्षा करने के साथ-साथ हमें अपनी रक्षा का भी ख्याल रखना है।