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गर्भपात से जुड़े नए नियम से 95 प्रतिशत महिलाएं हैं अनजान : अध्ययन

टीम Her Circle |  मार्च 01, 2023

एक नए अध्ययन के अनुसार, केवल 68 प्रतिशत महिलाएं गर्भपात को एक महिला के स्वास्थ्य अधिकार के रूप में मानती हैं, जिसमें यह भी पाया गया कि 95.5 प्रतिशत महिलाएं मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में संशोधन से अनजान थीं, जिसके तहत गर्भकालीन आयु पर्याप्त भ्रूण असामान्यताओं के मामलों में अब  20 से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई है। गौरतलब है कि यह अध्ययन फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज, इंडिया (FRHS) द्वारा चार राज्यों, जिनमें दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल है, इसमें किया गया था। हैरत करने वाली बात यह है कि एफआरएचएस, नैदानिक ​​परिवार नियोजन सेवाएं प्रदान करने वाली एक एनजीओ ने पाया कि अध्ययन के लिए साक्षात्कार लेने वाली हर तीसरी महिला या तो निश्चित नहीं थी या गर्भपात को अपने स्वास्थ्य अधिकारों में से एक नहीं मानती थीं, जबकि केवल 40 प्रतिशत को पता था कि भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी वैध है, जबकि 24 प्रतिशत महिलाओं का मानना ​​है कि एमटीपी "कुछ शर्तों के साथ कानूनी" है।

एक आश्चर्यजनक खोज में, केवल 4 प्रतिशत महिलाओं को पता था कि एमटीपी अधिनियम, 1971 को डेढ़ साल पहले संशोधित किया गया था, जिसमें पर्याप्त भ्रूण असामान्यताओं के मामले में 24 सप्ताह तक के गर्भपात को वैध बनाया गया था।  जानकारी हो कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट को 1.5 साल पहले संशोधित किया गया था, लेकिन गर्भपात की स्थिति होने के बावजूद उन्हें इस बारे में पता नहीं है कि अधिनियम में नए बदलाव लाये गए हैं। वे अभी भी अधिनियम में लाए गए बदलावों से अनजान हैं।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि एमटीपी अधिनियम, 1971 संशोधन 95 प्रतिशत फ्रंटलाइन हेल्थकेयर प्रदाताओं (एफएलडब्ल्यू) या आशा कार्यकर्ताओं के लिए अज्ञात है, जो महिलाओं के लिए संपर्क के शुरुआती बिंदु हैं। यह महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि दो-तिहाई से अधिक विवाहित महिलाएं गर्भावस्था और गर्भपात के लिए सूचना के मुख्य स्रोत के रूप में आशाआंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एएनएम) जैसे फ्रंटलाइन के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (एफएलडब्ल्यू) की तलाश करती हैं। वहीं अविवाहित महिलाओं में, 50 प्रतिशत ज्यादातर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भरोसा करती हैं और लगभग 33 प्रतिशत सूचना के प्रमुख स्रोत के रूप में शिक्षकों पर भरोसा करती हैं।

एफआरएचएस इंडिया की तरफ से प्रमुख अधिकारियों का यह मानना है कि एमटीपी अधिनियम संशोधन महिलाओं को अधिक स्वायत्तता की अनुमति देता है, लेकिन स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच जागरूकता की कमी आवश्यक बदलाव लाने में बाधा उत्पन्न कर रही है। इसके सफल होने के लिए, सरकार को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागरूकता गतिविधियों को तैनात करने की आवश्यकता है।

*Image used is only for representation of the story

 

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