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खानपान

जब तक रहेगा खाने का जादू, आपकी थाली में सजता रहेगा 'अलबेला आलू', जानिए आलू के बारे में दिलचस्प बातें

प्राची |  मई 13, 2023

गोल-गोल सा दिखता हूं, हर सब्जी का स्वाद बढ़ाता, लोग चाव से खाते हैं, चाट-पकौड़ी मुझसे बनती है, मुझसे चिप्स बन जाते हैं, पहचाना मुझे, आलू हूं मैं। जी हां, आलू पर लिखी गई यह कविता आपने बचपन में जरूर सुनी होगी। देखा जाए तो, सारे सब्जियों में से एक आलू ही अकेला ऐसा है, जिसे आप मेल-मिलाप वाली सब्जी कह सकती हैं। इससे सभी वाकिफ हैं कि आलू को आप किसी भी अन्य सब्जी, चावल के साथ या फिर किसी भी चीज के  साथ मिलाकर खा सकती हैं। यही वजह है कि आलू से एक या दो नहीं, बल्कि सैकड़ों डिश बनाई जाती है। सिर्फ भारत ही नहीं विदेश में भी कई ऐसी जगहें है, जहां पर आलू से जुड़ी कोई ना कोई डिश आपको जरूर मिल जाएगी और हम सभी के लिए, तो आलू घर के किसी सदस्य जैसा ही है। किचन में भले ही सारी सब्जी खत्म हो जाए, लेकिन आलू बिना कोई भी पकाई हुई सब्जी अधूरी लगती है। जाहिर-सी बात है कि आलू को भारत के हर किचन में ढेर सारा प्यार मिला है, लेकिन क्या आप जानती हैं कि आलू का स्वागत भारत में मेहमान बनकर हुआ था, जो कि भारत में कई दशक पहले आकर अपना घर बसा चुका है। आइए जानें विस्तार से। 

आलू को पहले पुकारा जाता था कमाटा

जानकारों के अनुसार आलू का जन्म दक्षिण अमेरिका की एंडीज पर्वत श्रृंखला में मौजूद समुद्र से करीब 3,800 मीटर की ऊंचाई पर हुआ था। इसके साथ यह भी दावा किया जाता है कि आलू की खेती कैरिबियन द्वीप पर शुरू की गई थी, उस वक्त आलू को कमाटा और बटाटा पुकारा जाता था। याद दिला दें कि आज भी महाराष्ट्र में आलू को बटाटा नाम से संबोधित किया जाता है। वहीं 16 वीं सदी में यूरोप में बटाटा ने अपना पहला कदम जब रखा, तो  आलू का नाम पोटैटो कर दिया गया।

भारत में आलू का आना

वर्ष 1772 से वर्ष 1785 के समय तक भारत के गर्वनर जनरल वारेन हिस्टिंग्स रहे थे। उन्होंने ही भारत में आलू को लाने का पहला कदम उठाया था। भारत में सबसे अधिक कोलकाता में आलू का व्यापार काफी बड़े स्तर पर हुआ और जब यूरोपीय व्यापारी कोलकाता आये, तो पोटैटो से इसे आलू पुकारा जाने लगा। तब से लेकर वर्तमान तक आलू का नाम आलू ही रहा। हालांकि भारत में आलू की लोकप्रियता को देखते हुए सबसे पहले नैनीताल में इसकी खेती शुरू हुई। 

उल्लेखनीय है कि 18 वीं शताब्दी में जब आलू की खेती की शुरुआत हुई थी, तो इसकी तीन किस्में होती थीं,जो कि अलग-अलग तरह से पैदा की जाती थीं, जैसे- मैदान में पैदा होने वाले आलू को फुलवा बुलाया जाता था। वहीं जो आलू गोल आकार के दिखते थें, उनका नाम गोला रखा गया। ऐसे भी आलू थे, जिनकी उगाई 60 दिन बाद होती थी, उन्हें साठा नाम दिया गया था।

दुनिया में आलू का उत्पादन 

आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व में कई प्रकार के आलू पाए जाते हैं। हालांकि इन सभी का स्वाद एक जैसा होता है, लेकिन यह एक दूसरे से अलग दिखाई देते हैं। माना गया है कि आलू की तकरीबन 5 हजार से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। मौसम के बदलते हुए माहौल के कारण यह सभी आलू दिखने में एक दूसरे से भिन्न होते हैं। यह भी दिलचस्प है कि एक रिपोर्ट अनुसार दुनिया में आलू का उत्पादन 40 करोड़ मीट्रिक टन के करीब होता है और चीन के बाद भारत में आलू की पैदावार सबसे अधिक होती है।

सबका साथ देने वाला है आलू 

केरल, तमिलनाडु और दक्षिण भारत को छोड़ कर भारत के लगभग हर राज्य में आलू की खेती होती है। आलू कई सारे रंगों में भी पाया जाता है जैसे- सफेद आलू, बैंगनी आलू, पीला आलू, काला आलू, रसेट आलू। यह भी जान लें कि गेहूं, धान और मक्का के बाद आलू है, जिसकी सबसे अधिक उगाई की जाती है। वैसे आलू में कई सारे पोषक तत्वों से भरा पड़ा हुआ है। माना जाता है कि आलू में कैल्शियम, मैंगनीज, पोटैशियम और भी कई सारे प्रोटीन पाए जाते हैं, जो कि शरीर को अंदर से शक्ति देता है, लेकिन आलू का अधिक सेवन सेहत के लिए हानिकारक भी हो सकता है। फिलहाल यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि आलू भारत के भोजन के इतिहास की ऐसी सदाबहार सब्जी है,जो कि भारत के खान-पान को कई दशकों से हरा-भरा रखती आयी है। 

आलू में परंपरा का स्वाद

आलू केवल भारतीय किचन का अहम भाग नहीं है, बल्कि भारत के कई पारंपरिक खान-पान का भी हिस्सा है। आप यह भी कह सकती हैं कि कई ऐसे राज्य हैं, जो कि आलू से बनने वाली अपनी पारंपरिक डिश के कारण लोकप्रिय हैं। इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश- बिहार से करते हैं, जहां पर सत्तू से बनी लिट्टी और आलू का चोखा, त्योहार और शादी की शान बढ़ाता है, इसके साथ ही दाल-चावल और आलू की भुजिया मां के हाथ का स्वाद लेकर आता है। वहीं महाराष्ट्र अपने सबसे स्वादिष्ट स्ट्रीट फूड वड़ा पाव को लेकर दुनिया में वाहवाही बटोरते चला आ रहा है और जब बात आलू की हो और अमृतसर के आलू कुलचे और आलू पराठे का जिक्र न हो, भला ये कैसे हो सकता है। अमृतसर के साथ पंजाब की हर गली में आलू कुलचा और आलू पराठा अपने पैर जमा कर बैठा हुआ है। वैसे रंग तो बंगाल के आलू का भी कमाल का है, जब बंगाल की लोकप्रिय डिश आलू पोस्तो और आलू की चुरचुरी दुर्गा पूजा में स्वाद का रंग घोल देती है। आलू का जायका और भी लाजवाब हो जाता है, जब राजस्थान जायफली आलू सूखे मसालों के साथ मुंह में चटकारा लेकर आते हैं और असम के आलू पिटिका और चावल की बात ही लाजवाब है। इन सबके बीच हिमाचल प्रदेश की दही से बनने वाली डिश आलू पालदा और गुजरात के लसनिया बटाटा ने पारंपरिक व्यंजनों में अपनी खास जगह बना रखी है। सबसे अंत में कश्मीरी दम आलू और उत्तराखंड के आलू गुटके  का स्वाद आलू की पारंपरिक व्यंजनों की फेहरिस्त को पूरा करता हुआ दिखाई देते हैं।

हर घर में बनने वाली आलू की 10 लोकप्रिय डिश

आलू से बनने वाली लोकप्रिय डिश में अचार के सूखे मसालों के साथ 'अचारी आलू' की रेसिपी बनाई जाती है। इसके बाद बारी आती है, हरे गिले मसाले के साथ तैयार किए गए 'आलू दम' की। वैसे गर्मी के इस मौसम में आलू को घी में भूनकर दही के साथ मिलाकर ठंडा 'आलू रायता' भी तैयार किया जाता है। अगर बात आती है चाय के समय की, तो 'क्रिस्पी आलू' और 'आलू सैंडविच' को खाने से भला कौन पीछे रह सकता है। जब बात आलू की हो रही है, तो आलू का हलवा और 'आलू सिंगदाना' की सब्जी उपवास में सबसे अधिक पसंद की जाती है। ठंडी के मौसम में आलू का सबसे अधिक इस्तेमाल हरी सब्जियों के साथ किया जाता है, जैसे-आलू पालक', 'आलू मेथी'। जब घर में कोई सब्जी न बची हुई हो, तो मेहमानों के सामने आप स्वादिष्ट 'दही आलू' की सब्जी और पूरी पूरे नंबर दे जाएगी और अक्सर चूल्हे में 'सेंके गए आलू' भी नमक के साथ गांव के सादे खाने का स्वाद बड़ा देती हैं।

फिलहाल यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि आलू भारत के भोजन के इतिहास का सदाबहार खाद्य पदार्थ है,जो कि भारत के खान-पान को कई दशकों से हरा-भरा रखता आया है।

 

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