फ़ैशन रिपोर्ट्स बताती हैं कि वर्ष 2021 में तो रीसेल फ़ैशन की धूम रही ही, लेकिन वर्ष 2022 में भी यह सेक्टर बहुत तेज़ी से विकास करने वाला है. वर्ष 2023 को तो रीसेल फ़ैशन ट्रेंड का साल ही माना जा रहा है और माना जा रहा है कि रीसेल मार्केट को लगभग 50 बिलियन का मुनाफ़ा होने वाला है. कई फ़ैशन एक्स्पर्ट्स का मानना है कि 2030 तक सेकैंड हैंड या रीसेल फ़ैशन की दुनिया में बहुत बड़े बदलाव आएंगे. इसकी एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि अब जो भी ग्राहक या उपभोक्ता हैं, वे पर्यावरण को लेकर सजग हुए हैं और इस वजह से वे हद से ज़्यादा बर्बादी नहीं होते देखना चाहते हैं. भारत में भी हाल के दिनों में रीसेल ब्रांड और फ़ैशन प्रोडक्ट्स की डिमांड क्यों बढ़ी है, आइए इसके बारे में जानें.
अब सेकेंड हैंड प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करने में हिचकिचाना नहीं
फ़ैशन डिज़ाइनर तनिका साफ़ कहती हैं कि फ़ैशन इंडस्ट्री में जो फ़ैब्रिक वेस्ट निकलता है, उससे पर्यावरण को बहुत नुक़सान होता रहा है, इसलिए अब जो भारतीय फ़ैशन डिज़ाइनर हैं, वे कई तरीक़े से ग्राहकों को रीसेल या सेकेंड हैंड चीज़ें ख़रीदने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, ताकि लोग नई चीज़ों की बजाय पुरानी चीज़ों को ही नए तरीक़े से संवार कर पहनना पसंद करें.
क्या है शांतनु निखिल का बाय बैक कैम्पेन
मशहूर सेलेब्रिटी फ़ैशन डिज़ाइनर निखिल ने वर्ष 2020 में अपना यह कैम्पेन लॉन्च किया. इसे लॉन्च करने के पीछे उनका उद्देश्य यही रहा कि वे अधिक से अधिक ईको फ्रेंडली व सस्टेनेबल रीसाइक्लिंग प्रोडक्ट्स लॉन्च करें. उन्होंने इस कैम्पेन के तहत ऐसे ग्राहकों से अपने बनाए हुए डिज़ाइनर आउटफ़िट्स को दोबारा ख़रीदने का प्रस्ताव दिया, जिनकी क़ीमत एक लाख रुपए से ऊपर की है, ताकि इन आउटफ़िट्स को फिर से नए तरीक़े से बना कर, दोबारा से बेचा जाए. इस तरह काफ़ी हद तक फ़ैब्रिक वेस्ट होने से बचाया गया. शांतनु और निखिल का यह क़दम सराहनीय रहा.
कई ब्रांड कर रहे हैं रीसेल
ऐसे कई ब्रांड्स हैं, जो ऑनलाइन क अपने ब्रांड्स की रीसेल कर रहे हैं. वे कम क़ीमतों में इसे बेचना पसंद कर रहे हैं. इससे उनके ग्राहक भी बढ़ रहे हैं और साथ ही यह पर्यावरण के लिए फ़ायदेमंद भी है. फ़ैशन इंडस्ट्री से जुड़े एक्स्पर्ट्स का मानना है कि आज की जेनेरेशन को कपड़ों में लुक से मतलब है, वे इस बात को तवज्जो नहीं देते हैं कि कपड़े कितने महंगे हैं और किससे ख़रीदे गए हैं. सोशल मीडिया की वजह से पर्यावरण के अनुकूल बनाए गए कपड़े, जो आपकी स्किन के लिए बेहतर हैं और पर्यावरण के लिए भी, उनकी जानकारी युवाओं को ख़ूब है. और वे इस बात को सपोर्ट करते हुए ऐसे रीसेल कपड़े ख़रीदने में हिचकिचा नहीं रहे हैं. फ़ैशन इंडस्ट्री के रिपोर्ट के अनुसार सेकेंड हैंड मार्केट अगले पांच साल में और अधिक बढ़ेगा. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पहले 95 प्रतिशत कपड़े, जिन्हें रिसाइकल किया जा सकता था या रियूज़ किया जा सकता था, वे फेंक दिए जाते थे. लेकिन अब इस पर भी काम शुरू हो गया है. लगभग 33 मिलियन ग्राहकों ने सेकेंड हैंड अपैरल की ख़दारी की है. ख़ासतौर से कोविड महामारी के बाद लोगों ने अपने पॉकेट का ख़्याल रखते हुए भी रीसेल कपड़े ख़रीदने पर ज़ोर दिया है. भारत में पोषमार्क जैसे ब्रांड्स रीसेल ब्रांड के रूप में ख़ूब उभरे हैं. यहां आप उन कपड़ों को, जिनसे बोर हो गई हैं और जिन्हें आपकी वॉर्ड्रोब में रखने की जगह नहीं है, लेकिन वे कपड़े पहनने की स्थिति में हैं, आसानी से रीसेलिंग कर सकती हैं.
क्या भारत इसके लिए तैयार है?
अमेरिका में रीसेल फ़ैशन ने अच्छा कारोबार कर लिया है और वहां यह फ़ास्ट फ़ैशन फ़िगर्स लेकर आ रहा है. लेकिन बात जब भारत की आती है तो यहां के बायर्स सेकेंड हैंड कपड़ों की सेफ़्टी और क्वालिटी को लेकर थोड़े कन्फ़्यूज़ रहते हैं. लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे सोशल मीडिया पर ऐसे प्रयासों के बारे में चर्चाएं और प्रचार हो रहे हैं, जो सस्टेनेबिलिटी की ओर अग्रसर हुए हैं, युवाओं का इसपर ध्यान गया है. कियाबजा जैसे ब्रांड्स महिलाओं, पुरुषों और बच्चों के लिए काफ़ी विकल्प लेकर आ रहे हैं.
रीसेल को लेकर मिथक
भारत में लोग भले ही कार, इलेक्ट्रॉनिक्स आयटम रीसेल में ले लें, लेकिन कपड़ों को लेकर उन्हें हाइजीन की समस्या लगती है. जबकि इस मिथक को तोड़ना भी ज़रूरी है कि जो भी रीसेल ब्रांड कपड़ों की सेलिंग कर रहे हैं, वे कपड़ों को बाक़ायदा अच्छे से धुलवाने के बाद ही बेचते हैं, जिससे सारे जर्म्स मर जाएं, वे सफ़ाई के सारे मापदंड फ़ॉलो करते हैं.
क्या चीज़ें हो सकती हैं रीसेल
डेनिम जैकेट्स, पर्स, कैप्स, जैकेट्स, दुप्पट्टे, हूडीज, डिज़ाइनर शेरवानी, डिज़ाइनर लहंगे, जेवेलरी जैसी चीज़ों को आसानी से रीसेल किया जा सकता है और ख़रीदा जा सकता है.