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संस्कृति

बस्ते के बोझ से डिजिटिल दुनिया तक छलांग, बच्चों के लिए यूं बदला है एजुकेशन सिस्टम

शिखा शर्मा |  मई 09, 2023

एक जमाना था जब आप अपने नाजुक कंधों पर स्कूल का बस्ता दूर तक ढोते हुए जाते थे। पढ़ाई पूरी करने के लिए ना जाने कितनी किताबें, कितनी बार पढ़ते थे। लेकिन, अब समय बदल गया है। आप अपने बच्चों को स्कूल जाते हुए देखती होंगी, तो सोचती होंगी कि काश !  ये सुविधाएं आपको मिली होतीं। हमने मुंबई के एक प्राइवेट स्कूल की प्राइमरी टीचर आकांक्षा दत्ता से बात की और उन्होंने हमें बच्चों के एजुकेशन सिस्टम में आए ऐसे कुछ महत्वपूर्ण बदलाव के बारे में बताया जो सच में सराहनीय है।

अब बस्ते का बोझ नहीं है 

आकांक्षा ने सबसे पहले यही बात कही कि बच्चों के प्रति एजुकेशन सिस्टम का नजरिया बदला है। उनकी बातों, उनकी सहूलियत और उनकी क्षमता का ध्यान रखा जाने लगा है। पिछले 12 सालों के तजुर्बे में आकांक्षा ने पिछले कुछ 4-5 सालों में कई बदलाव देखे। आकांक्षा कहती हैं, “मुझे सबसे अच्छा और सही बदलाव यह लगता है कि कई अब बच्चे बैग में किताबों का बोझ लेकर नहीं आते। अब हर स्कूल के पास हर बच्चे के लॉकर हैं या हर क्लास की अपनी अलमारी है, जहां बच्चों की किताबें होती हैं। बच्चे अब घर से थक कर नहीं आते और जाते समय भी थक कर नहीं जाते।’’

स्कूल में नई टेक्नोलॉजी

ब्लैक बोर्ड की जगह व्हाइट बोर्ड ने ले ली है। स्कूल में अच्छे प्रोजेक्टर भी मौजूद हैं, कम्प्यूटर पर भी पहले से ज्यादा सॉफ्टवेयर हैं और बच्चों को इसकी सुविधा उठाने के लिए पहले की तरह महीने में एक दिन नहीं मिलता। अब लायब्रेरी सिर्फ किताबों से नहीं बल्कि, कम्प्यूटर से भी भरी हैं। आकांक्षा ने कहा, “मुझे हमेशा लगता था कि बच्चों पर विजुअल पढ़ाई का काफी असर होता है और पहले के मुकाबले ये बातें सभी को समझ में आने लगी है।”

कोविड के बाद डिजिटल हुआ एजुकेशन सिस्टम

कोविड के बाद जहां पूरी दुनिया ने अपने आपको डिजिटल की तरफ मोड़ा है, वहीं स्कूल की दुनिया में भी डिजिटल ने एंट्री ली। आकांक्षा बताती हैं कि उनके लिए भले ही ये इतना नया नहीं था, क्योंकि वह कम्प्यूटर चलाना और डिजिटल वर्ल्ड से अवगत थीं, लेकिन उनके साथ पढ़ाने वाली अन्य टीचर्स के लिए काफी मुश्किल था। लेकिन, आकांक्षा खुश हैं कि अब बच्चों को डिजिटल शिक्षा दी जा रही है यह बहुत ही आसान तो है ही बल्कि, इससे बच्चे काफी कुछ सीखते भी हैं।

पढ़ाई के अलावा स्पेशल एक्टिविटी को भी देने लगे हैं तवज्जों

आकांक्षा ने कहा कि वो खुद बचपन में कबड्डी खेला करती थी लेकिन, उस समय उसे बस खेल माना जाता था और स्कूल में महीनें में एक या दो बार खिलाया जाता था। स्पेशल एक्टिविटीज की क्लास भी बस नाम की थी। सबका फोकस सिर्फ पढ़ाई पूरी कराने में होता था लेकिन, अब सब अच्छा हो गया है। स्कूल में सिर्फ डॉक्टर, इंजीनियर नहीं बल्कि आर्टिस्ट, स्पोर्ट्स पर्सन भी तैयार किये जा रहे हैं।

ग्रेड सिस्टम

ग्रेड सिस्टम ने भी पढ़ाई में काफी बदलाव लाए हैं। अब परसेंटेज और मार्क्स के हिसाब से नहीं, बल्कि बच्चों को ग्रेड्स दिए जाते हैं, जिससे उन्हें किसी तरह का प्रेशर फील न हो और उन्हें अपनी ताकत और कमजोरियों के बारे में पता चले। आकांक्षा ने कहा, “इस सिस्टम का एक बड़ा फायदा यह है कि हर बच्चे को उसकी ग्रेड के हिसाब से ट्रीट किया जाए। इसमें भेदभाव नहीं आएगा, बस पढ़ाने का तरीका बदलेगा और चीजें आसानी से समझ में आएंगी।’’

एजुकेशन सिस्टम में आए यह नए बदलाव टीचर्स और बच्चों के बीच भी अच्छा बॉन्ड बनाने का काम भी कर रहे हैं। पिछले कई सालों में बच्चे टीचर्स के साथ ज्यादा घुलते-मिलते नजर आए हैं और ऐसे बदलाव की भारत को बहुत जरूरत थी। आकांक्षा मानती हैं “बच्चे ही भविष्य है और हमें भविष्य को बदलने की पूरी जरूरत है।”

 

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