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संस्कृति

जन्माष्टमी स्पेशल : द्रौपदी को कृष्ण में हमेशा दिखा एक ‘सखा’, महिलाओं के बीच रही शासक नहीं 'सारथी' वाली छवि

अनुप्रिया वर्मा |  अगस्त 19, 2022

झारखंड के रांची शहर में मेरा लंबा समय बीता है। लगभग सात साल मैंने गर्ल्स हॉस्टल में गुजारे हैं और अगर मैं याद करती हूं, तो मेरे जेहन में ऐसा कोई साल नहीं आता है, जब मेरे हॉस्टल की लगभग लड़कियों ने जन्माष्टमी पर्व पर भगवान कृष्ण के लिए व्रत नहीं किया होता था। हर लड़कियों के कमरे में श्री गणेश के बाद, अगर किसी भगवान की मूर्ति या पोस्टर होते थे, तो वह भगवान कृष्ण के ही होते थे। मुझे ये बातें अच्छी तरह से याद हैं कि उनमें से मेरी ऐसी कई सहेलियां थीं, जो अपने मन की बात कृष्णा से करती थीं, कई लड़कियों के पास लड्डू गोपाल वाले कृष्ण की छवि या मूर्ति तो मैंने अमूमन देखी है। वे कहती थीं, मेरे सखा हैं कृष्ण। उनसे मन की हर बात शेयर करके दिल को सुकून मिल जाता है। हमारे हॉस्टल के ही पीछे एक मंदिर भी था, हमारे ही लैंड लॉर्ड का, जहां जन्माष्टमी का पर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता था और मुझे यह भी याद है कि हम सभी लड़कियां खूब सज-धज कर, एन्जॉय करने के मूड में जाती थीं। उस वक़्त मेरे जेहन में शायद वह बातें नहीं आती थीं, लेकिन आज जब मैं सोचती हूं तो इस बात पर गौर करती हूं कि भगवान कृष्ण, क्यों महिलाओं या लड़कियों के बीच एक भगवान के रूप में एक भगवान के रूप में नहीं, बल्कि सखा/ दोस्त के रूप में लोकप्रिय हैं। 

अब मैं गुजरे पल याद करती हूं, तो महसूस करती हूं कि हॉस्टल की वे लड़कियां, जो बाकी किसी भी भगवान के पूजन में कोई गलती न हो जाये का खास ख्याल रखती थीं, लेकिन भगवान कृष्ण के साथ ऐसा अपनापन और दोस्ताने वाले रिश्ता रखती थीं कि उन्हें मन की बातें कह जाती थीं। यहां भक्ति से अधिक दोस्ताना रिश्ता नजर आता था। उनके जन्म यानि जन्माष्टमी में हमारी शॉपिंग वैसे होती थी, जैसे किसी दोस्त की शादी के लिए हो रही हो। उनके झूले के लिए, कई महीनों पहले से तैयारी शुरू हो जाती थी।  मैंने कभी कृष्ण की पूजा लड़कियों को डरते हुए नहीं या अरे कुछ गलती न हो जाये, वाले मूड में नहीं देखी है, बल्कि सभी सेलिब्रेशन के ही मूड में रहा करती थी। 

दरअसल, इसकी सबसे खास वजह है कि वाकई में भगवान कृष्ण की जो छवि है, वह वीमेन फ्रेंडली रही है। ऐसे कई प्रसंग रहे हैं, जिनकी वजह से महिलाओं के जेहन में भगवान कृष्ण ने खास जगह बना ली है। कहीं न कहीं यह बेहद स्वाभाविक तरीके से महिलाओं या लड़कियों के दिलों में बात घर कर चुकी है कि भगवान कृष्ण दोस्त हैं, उनसे हमेशा एक बराबरी का दर्जा उन्होंने महसूस किया है और यही वजह है कि जिनकी कोई दोस्त नहीं बन पाते या पाती हैं, वे भी कृष्ण में एक सखा ढूंढ ही लेते हैं और इसलिए पूरे भारत में जन्माष्टमी की धूम मची रहती है।

मैंने ये भी गौर किया है कि छोटी उम्र की बच्चियों में भी कृष्ण के प्रति एक बेहद लगाव है, मेरी दीदी की चार साल की बेटी से जब किसी ने पूछा फ्रेंड का मतलब, तो मुझे याद है, उसका जवाब था कृष्णा। उसने बड़े ही प्यार से घर में लड्डू गोपाल की मूर्ति सजा रखी है और उनसे हर दिन बातें करती हैं। मेरी दोस्त की बिटिया रानी को भी किसी भी जन्माष्टमी में राधा नहीं कृष्ण ही बनना होता है। दरअसल, कृष्ण का आकर्षण सिर्फ उनके साज-श्रृंगार से नहीं है, बल्कि अपनेमन और दोस्ताना व्यवहार का एक तेज है, जो छोटी उम्र से ही महिलाओं को अपनी ओर खींचता है।

यूं ही नहीं बनीं वीमेन फ्रेंडली कृष्ण की छवि 

अगर गौर करें, तो कृष्ण की जो छवि बनी है वीमेन फ्रेंडली होने की, यह महिलाओं के बीच अचानक से नहीं बनी है और न ही थोपी गई है, बल्कि कृष्ण के प्रति महिलाओं का स्नेह काफी स्वाभाविक है और इसकी वजह  ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं, जहां भगवान कृष्ण महिलाओं के लिए बराबरी के दर्जे की बात करते हुए नजर आते हैं और यही बातें महिलाओं के बीच उन्हें खास बनाती हैं। फिर चाहे भगवान कृष्ण का राधा को प्यार में दिया गया सम्मान हो, गोपियों के बीच प्रासंगिकता हो या फिर द्रौपदी और सुभद्रा के हक और सम्मान की बात करना हो। संदर्भों के आधार पर अगर यह कहा जाये कि कृष्ण फेमिनिज्म में घोर विश्वास करने वाले भगवान रहे हैं, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। 

मेरी अपनी व्यक्तिगत राय है, एक ऐसा पुरुष जो अच्छा श्रोता हो और किसी बात को लेकर जजमेंटल न हो, वहीं एक अच्छा दोस्त बन सकता है और कृष्ण में यह सारी खूबियां रहीं। वह एकतरफा सोच में नहीं, बल्कि बराबरी के दर्जे की बात करते आये हमेशा। उन्हें महान पुरुषों की बनी-बनाई छवि में भी खुद को गढ़ने और रचने का कभी मोह नहीं रहा। वह जैसे थे, वैसे ही बने रहे। यह बातें ही उन्हें महिलाओं के बीच खास दर्जा दिलाती हैं, जहां महिलाएं उन्हें सम्मान या किसी बड़प्पन की नजर से नहीं, बल्कि अपनेपन की नजर से अधिक देखती हैं। यही वजह रही कि द्रौपदी और कई महिलाओं ने कृष्ण के साथ एक खास रिश्ता कायम किया। 

द्रौपदी -कृष्ण के बीच विचारों के आदान-प्रदान की रही स्वतंत्रता 

महाभारत में ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं, जहां द्रौपदी और कृष्ण की दोस्ती की बॉन्डिंग के किस्से दोहराये जाते हैं। गौर करें, तो इन दोनों के ही रिश्ते में सबसे जो खास बात रही कि पुरुषवादी समाज से संबंधित होने के बावजूद भगवान कृष्ण का यह व्यक्तित्व था कि वह विचारों की स्वतंत्रता पर विश्वास रखते थे और द्रौपदी भी अपने आप में एक बेहद स्ट्रांग वुमेन रही हैं, वह अपनी शर्तों पर रहीं और कृष्ण के साथ अपने विचारों की आजादी के कारण ही दोस्ती का रिश्ता विकसित कर पायीं। भरी सभा में जब पांडव, चीरहरण के वक्त, अपनी पत्नी के सम्मान की रक्षा नहीं कर पाए, तो द्रौपदी के जेहन में एक ही नाम आया और वह है कृष्ण। द्रौपदी के लिए जो कदम कृष्ण ने उठाया, वह इस बात का प्रमाण है कि उनके लिए किसी महिला की सम्मान की रक्षा करना कितना बड़ा फर्ज था, जबकि पांडवों ने तो उन्हें भोग की वस्तु समझ कर, उन्हें भी दांव पर लगा दिया था। सच यही है कि यह जो घटना हुई, इसमें अचानक ही कृष्ण का आगमन नहीं हो गया था, बल्कि कृष्ण हमेशा से ही औरतों के सम्मान की बात करते आये हैं और उन्हें उसी बराबरी के दर्जे के रूप में देखते हैं, यही वजह रही कि इस वक्त भी उन्होंने वहीं किया, जो एक असली पुरुष को किया जाना चाहिए था। साथ ही वह इस अपमान को भूले नहीं, महाभारत में संदर्भ बताते हैं कि उन्होंने द्रौपदी से वादा किया था कि वह इस अपमान का जवाब जरूर देंगे और फिर महायुद्ध इस बात का प्रमाण रहा।  दरअसल, वास्तविक जिंदगी में भी देखें, तो बुरे दौर में आप उन्हें ही मुसीबत में याद करते हैं, जिन पर आपको यकीन होता है कि वह जरूर आयेंगे। कृष्ण ने द्रौपदी का मान रखा। और द्रौपदी की नजरों में कृष्ण का सम्मान और बढ़ गया कि वह हर परिस्थिति में एक महिला का सम्मान करने से पीछे नहीं हटेंगे, जबकि उनके खुद के पति सिर झुकाये खड़े थे। 

प्रोगेसिव और समानता की सोच ने दोनों को दोस्त बनाया 

द्रौपदी और कृष्ण के रिश्ते की एक खासियत यह भी रही कि द्रौपदी काफी प्रभावशाली और अपनी बातों को जाहिर करने वालों में से रहीं, कृष्ण ने हमेशा इस बात की इज्जत की। ऐसे प्रसंग मिलते हैं कि कृष्ण और द्रौपदी दोनों ही बेहद श्वेत या गोरे नहीं रहे, लेकिन दोनों ने ही अपनी बॉडी और रंग को लेकर हमेशा दोनों में सहजता रही और कभी भी दोनों ने एक दूसरे को नीचा नहीं दिखाया। जाने-अनजाने, आप किसी के दोस्त तभी बनते हैं, जब आप एक धरातल पर रह कर सोचते हो। गौर करें, तो दोनों के रिश्ते में ब्यूटी विद ब्रेन का एक अनोखा संगम है। दोनों ही बिना सोचे-समझे निर्णय लेने वालों में से या किसी और निर्णय खुद पर थोपे जाने के पक्ष में कभी नहीं रहे हैं। 

द्रौपदी की दोस्ती के बहाने, महिलाओं की मन की बातें समझ पाए कृष्ण 

अमूमन वे लड़के, जो लड़कियों के घिरे रहते हैं, उनके लिए हम यही कहते हैं कि अरे क्या गोपियों के बीच नंद लाला बने फिर रहे हो, क्योंकि भगवान कृष्ण की छवि वृंदावन में गोपियों के बीच ही पले-बढ़ने की है। बचपन से कृष्ण के सफर को देखें, तो वह यशोदा के लाड़ले रहे, तो राधा के साथ गोपियों के साथ घिरे रहे, शायद यह वजह है कि वह महिलाओं के दर्द, उनकी जरूरतों और उनकी इच्छाओं को अधिक व्यक्तिगत रूप से समझ पाए हैं। कल्पना करें, तो वृंदावन में जब महिलाएं, यशोदा के घर पर आया करती होंगी और अपने घर की परेशानियों और दुःख-दर्द को बांटती होंगी, तब कहीं न कहीं कृष्ण के जेहन में बचपन से ही यह भाव घर करती जा रही होंगी कि उन्हें कैसा पुरुष बनना है। द्रौपदी से उनकी बॉन्डिंग होना, उस नींव का ही एक्सटेंशन रहा, जो लगाव  उनका बचपन से महिलाओं के प्रति समानता वाले भाव में रहा। कृष्ण में बचपन से ही दूसरों के इमोशन को पढ़ने और समझने की क्षमता रही और द्रौपदी भी ठीक वैसी ही स्त्री रहीं, ऐसे में द्रौपदी से बॉन्डिंग होने के बहाने, कृष्ण ने पूरी स्त्रीवादी सोच और उनकी परेशानियों को समझने की कोशिश की, ये बातें ही महिलाओं में उन्हें प्रासंगिक बनाता है। 

एक अच्छे श्रोता और जजमेंटल न होना है खासियत 

द्रौपदी अपने विचारों और निर्णय को लेकर स्पष्ट रही हैं और उन पर कभी किसी का जोर नहीं रहा, भले ही पांडवों की वह पत्नी थीं, लेकिन उन्होंने अपनी शर्तों पर ही जिंदगी जी, ऐसे में कृष्ण भी एक ऐसे श्रोता रहे, जो हमेशा लोगों की परेशानियों और उनकी बातों को गहराई से सुनते समझते रहे हैं, उन्होंने कभी किसी के व्यक्तित्व को जज करने की कोशिश नहीं की, फ़ौरन किसी निर्णय पर नहीं आये, यही वजह है कि द्रौपदी ने हमेशा खुल कर कृष्ण के सामने अपनी बातें रखीं। कृष्ण वह व्यक्तित्व रहे, जिन्होंने हमेशा द्रौपदी को अपनी जिंदगी बिना किसी दबाव के जीने की सलाह दी, ऐसे कितने पुरुष हमारे इर्द-गिर्द होते हैं, जो महिलाओं को यह नसीहतें देते हुए नजर आएं कि अपनी शर्तों पर जिंदगी जियें। महाभारत की जीत भले ही पांडवों के नाम हो, लेकिन द्रौपदी को ही मुख्य बिंदु माना जाता रहा है इसके लिए। 

एक अच्छे सलाहकार बने रहे कृष्ण 

कृष्ण और द्रौपदी के रिश्ते में शुद्ध रूप से बिना किसी शर्त, बिना किसी दबाव वाला बॉन्डिंग बना रहा, कृष्ण द्वारा दिए गए सलाह पर द्रौपदी ने हमेशा अमल किया, वह परिवार के लिए भी समर्पित रही, तो अपनी बातों को भी मजबूती से रखती रहीं। यह कृष्ण का ही प्रभाव द्रौपदी की जिंदगी में रहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी द्रौपदी ने अपनी सूझ-बूझ से काम किया। ऐसे कई संदर्भ मिलते हैं, जब कृष्ण ने हमेशा ही द्रौपदी को एहसास कराया कि महिलाएं, किसी से कम नहीं होती हैं, बौद्धिक रूप से भी नहीं, इसलिए उन्हें पूरा हक है कि वह अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करें। स्ट्रांग वीमेन क्या होती हैं, उनके क्या हक हैं और वे क्या-क्या कर सकती हैं, इन बातों को लेकर कृष्ण ने हमेशा ही महिलाओं की तरफदारी की। यही वजह है कि द्रौपदी पौराणिक इतिहास में एक स्ट्रांग वीमेन बनी रहीं। 

हीरोइक इमेज की कोशिश नहीं 

कृष्ण के व्यक्तित्व की एक और बात, जो महिलाओं को स्वाभाविक रूप से आकर्षित कर जाती है कि अमूमन पुरुषों में, महिलाओं के बीच अपनी ताकत दिखाने या हीरो बनने की चाहत होती है। लेकिन कृष्ण, इसके उलट गोपियों के साथ खुद को अपहरण किये जाने, उनके साथ हंसी-ठिठोली करने, उनके रंग के मजाक उड़ाए जाने को लेकर सहज नजर आये। वह कभी महिलाओं के बीच अपनी ताकत दिखा कर या फिर कुछ हीरोइक करके नायक बनने की झूठी कोशिश में नहीं जुटे। वे आदर्शवादी बनने का भी ढोंग करते कभी नजर नहीं आये। जैसे थे, वैसे बने रहे। यही बातें महिलाओं में कृष्ण को हमेशा ही प्रासंगिक बनाती रही हैं। 

साम्राज्य में भी दिया महिलाओं को बराबरी का दर्जा 

कृष्ण जब सखा बने तब भी और जब राजा बने, तब भी उन्होंने महिलाओं को जेहन में रखा। संदर्भ बताते हैं कि उन्होंने रुक्मिणी से भी विवाह भी उस वक्त किया, जब रुक्मिणी ने कृष्ण को बताया कि वह उस शख्स से शादी नहीं करना चाहती हैं, जो उनके भाई ने उनके लिए चुना है। ठीक ऐसे ही, उन्होंने सुभद्रा के मन की बात को भी तवज्जो दिया और अपने मन के वर से शादी करने के लिए प्रेरित किया। एक और महत्वपूर्ण संदर्भ महाभारत में मिलता है कि जब शिखंडी को अपनी सेना में शामिल करने के लिए भीष्म तैयार नहीं थे, तब भी कृष्ण ने ही उन्हें सेना में शामिल किया। 

वाकई, कृष्ण के व्यक्तित्व, काल और युग का आकलन करें, तो उनके व्यक्तित्व में वे कई खूबियां मिलती हैं, जब वह महिलाओं के बीच खड़े रह कर, उनके लिए बराबरी, उनके हक और उनके सम्मान के लिए सिर्फ बातें नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाते नजर आये हैं और यही वजह है कि आज भी उन्हें महिलाओं के बीच एक अलग ही प्यार और अपनेपन का दर्जा हासिल है, क्योंकि महिलाएं एक पुरुष में जो देखना चाहती हैं वह है उनके लिए सम्मान देखना और यह सब उन्हें कृष्ण की छवि में हमेशा ही पूर्ण होता नजर आता है। शायद कृष्ण के यही मोहक गुण रहे, जिन्होंने उन्हें महिलाओं की नजर में शाषक नहीं सारथी बना रखा

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