आप जब शाम में बड़े चटकारे लेते हुए समोसे खा रही होती हैं, क्या आपने कभी सोचा है कि ये कहां से आया है। दरअसल, भारत में ऐसे कई फूड आयटम्स हैं, जो भारतीय घर-परिवार के खान-पान का अहम हिस्सा हैं, लेकिन यह भारतीय फूड्स नहीं हैं, बल्कि विदेशी सरजमीं इनकी पैदाइश हैं। आइए जानें इनके बारे में विस्तार से।
चाय

भारत की आबादी का आधे से अधिक लोग अपने दिन की शुरुआत चाय से करना पसंद करते हैं। विश्व में चाय उत्पादन में भारत का सबसे पहला स्थान है। भारत के हर गल्ली नुक्कड़ में और कुछ मिले ना मिले चाय जरूर मिल जाएगी। भारत के लगभग हर राज्य में इसे अलग-अलग ढंग से बनाया जाता है और इसे अलग नाम से पुकारा जाता है। कश्मीर में नून चाय तो तमिलनाडु के नीलगिरि चाय, लेकिन आपको जानकार आश्चर्य होगा कि चाय हमारे देश की नहीं है। इसकी खोज चीन में 2700 ईसा पूर्व में हुई थी । 1610 में डच व्यापारी चाय को चीन से यूरोप ले गए और बाकी की दुनिया से इसे रूबरू करवाया। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी 1800 के आस-पास इसे लेकर आयी,हालांकि इस बात का भी जिक्र है कि असम के जंगलों में चाय की पत्तियां पहले से ही पैदा होती थी, लेकिन उस वक्त लोग इसे इस्तेमाल में नहीं लाते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के जनरल लार्ड विलियम बैटिक ने इस बात को समझा और जंगल से उस पौधे को निकालकर चाय के बगान तैयार किए, फिर भारत के बगानों से चायपत्ती की आपूर्ति पश्चिमी देशों में शुरू हुई।
जलेबी

जलेबी भारत की राष्ट्रीय मिठाई सी लगती है। सादी जलेबी ही सभी को खूब पसंद है, लेकिन जलेबी दूध, जलेबी रबड़ी, जलेबी दही,जलेबी फाफड़ा से लेकर मावा तो कभी पनीर से बनी जलेबी भी लोग बड़े चाव से खाते हैं। भारत के हर राज्य का जलेबी खाने का अपना अंदाज है, लेकिन यह जलेबी भारत के किसी भी राज्य की नहीं, बल्कि इरान से आयी मिठाई है। जानकारों की मानें, तो इसका असल नाम जलाबिया है। मध्यकाल में यह तुर्की और फारसी व्यापारियों के साथ भारत पहुंची और फिर इसने भारतीय जुबान से लेकर दिल तक में अपनी खास जगह बना ली।
समोसा

चाशनी में डूबी जलेबी के बाद बात भारत के पहले फास्ट फूड समोसे की। भारत में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, जिसे समोसा पसंद न हो। ज्यादातर भारतीयों की मानें तो यह पसंदीदा नमकीन भारतीय ही है, लेकिन इससे जुड़ा इतिहास कुछ और ही कहता है। जलेबी की तरह यह भी ईरान के प्राचीन साम्राज्य से आया है। इसका नाम फारसी के सम्बोसा से आया है। समोसे के जिक्र 11 वीं शताब्दी के फारसी लेखक अबू फज़ल बेयाकी की किताब में है। उन्होंने गजनवी साम्राज्य के राज दरबार में पेश होने वाली नमकीन चीजों का जिक्र किया है, जिसमें कीमा और सूखे मेवे भरे होते थे और उसे तब तक तला जाता जब तक ये क्रिस्पी न हो जाए। वहां से यह व्यापारियों द्वारा मध्य एशिया से होते हुए अफगानिस्तान तक, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान तक पहुंचा और फिर हिंदुकुश पर्वतों से होता हुआ हिंदुस्तान में। ईरान से हिंदुस्तान तक की इस यात्रा में समोसे का स्वाद बदलता चला गया। भारतीय के हिब्दुकुश के पर्वतों से होते हुए यह भारत तक। सोनल वेद की किताब हूज समोसा इज इट एनीवे में इस बात का जिक्र किया है कि समोसे के अंदर भरी जाने वाली सामग्रियों में बदलाव हुआ, लेकिन इसके आकार में नहीं और आज भी इसे तल कर ही खाया जाता है।
गुलाब जामुन

भारतीय के लिए खुशी का कोई भी मिठाई के बिना अधूरा है। भारत में कई तरह के स्वादिष्ट मिठाईयां बनायी जाती है। इसी में अपनी खास जगह गुलाब जामुन ने बनायी है, लेकिन भारतीयों की यह पसंदीदा मिठाई भारतीय नहीं है। इतिहासकार माइकल क्रांजल के मुताबिक यह पर्शिया की मिठाई है, जिसे 13 वीं शताब्दी के आस-पास वहां के लोग बड़े चाव से खाते थे और इसका नाम लुकमत अल कादि था। पर्शिया से यह मिठाई टर्की पहुंची और इसका नाम तुलुम्बा हुआ। टर्की से यह मुगल बादशाह शाहजहां के बावर्ची खाने में यह पहुंची। यहां ही इसका नामकरण गुलाब जामुन हुआ। ऐसी बात सामने आती है।
दाल चावल

दाल चावल को भारतीयों का कंफर्ट फूड कहा जाता है, लेकिन भारतीयों का यह कंफर्ट फूड भारतीय नहीं है। यह पड़ोसी देश नेपाल की देन है। फूड्स से जुड़े इतिहासकारों की मानें, तो उन्होंने ही दाल चावल को एक साथ मिक्स कर खाया और उसके बेहतरीन स्वाद को जाना, जिसके बाद यह भारत में कुछ समय बाद ही प्रचलन में आ गया और हर घर का हिस्सा बन गया।