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संस्कृति

पारिवारिक प्रेम, सामाजिक सरोकार और लोक-संस्कृति का अनोखा संगम है छठ

अनुप्रिया वर्मा |  नवंबर 19, 2023

वो नहाय खाए के दिन कद्दू भात्त  भी स्वाद ले ले के खाना,

वो संध्या बेला पर मिट्टी के बर्तन में गुड़ की खीर और रोटी पकाना,

वो नंगे पांव, मीलो दूर घाट पर पैदल चले जाना,

वो व्रतिन संग गुड़ घी का ठेकुआ ठोकना,

और साथ में शारदा सिन्हा का मधुर गाना,

पानी फल, अनरसा से फल की डलिया को पीले कपड़े से सजाना,

वो कोसी में गन्ने का मंडप सज जाना

वो भोरे भोर घाट घाट घूम के खोयेचा में ठेकुआ और पूड़ी कमाना

नारंगी सिंदूर से नाक से मांग तक सुहागिन का सफर कर जाना

बस अपने छठ पूजा के यह चार दिन का यही है खजाना।

पूरे साल में दीपावली के बाद, किसी पूजा का सबसे खास इंतजार होता है, तो वह छठ पूजा ही हैं। खासतौर से बिहार, झारखंड  और उत्तर प्रदेश इलाके में होने वाली यह पूजा, अब विदेशों और दूसरे राज्यों में रहने वाले प्रवासी बिहारियों द्वारा भी खूब धूमधाम से मनाया जाता है। अगर आप अपने शहर से दूर हैं और बिहार या उत्तर प्रदेश से संबंध रखती हैं, तो इस बात का एहसास सिर्फ आप ही कर सकती हैं कि इस वक्त किसी भी तरह अपने होम टाउन पहुंचने के लिए ट्रेन के टिकट या हवाई टिकट लेने में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है, लेकिन इन सबके बावजूद अगर आपके घर में मां या कोई भी सदस्य छठ करती हैं या करते हैं, तो आप उन सारी परेशानियों को उठाने के लिए क्यों तैयार रहते हैं। दरअसल, छठ सिर्फ एक पूजा नहीं है, बल्कि यह अपने परिवार के प्रति आपका जुड़ाव भी दर्शाता है, यह ऐसी पूजा मानी जाती यही, जिसमें चार दिनों का आयोजन होता है और यह पूजा जितनी विधि-विधान से की जाती है, इसमें कई सारी जिम्मेदारियां पूरी करनी होती है और जैसा कि मेरी दादी कहा करती थी, छठ पूजा किसी शादी से कम नहीं होता है, ऐसे में अगर परिवार के सभी सदस्य साथ न हो, तो किसी एक पर सारी जिम्मेदारियां आ जाती हैं। इस पूजा को आखिर क्यों सिर्फ पूजा के रूप में नहीं बल्कि पारिवारिक आस्था के साथ सामाजिक सरोकार के रूप में भी देखा जाना चाहिए, आइए जान लेते हैं विस्तार से। 

क्या होता है चार दिनों के इस पर्व में 

छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है, इस दिन व्रतिन सुबह ही स्नान करके फिर माथे पर से सिंदूर लगाती हैं। फिर इस दिन मुख्य रूप से भोजन के रूप में सात्विक कददू की सब्जी, चने की दाल, लौकी की सब्जी और चावल पकाया जाता है, इस दिन को कद्दू भात के दिन के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन का खाना सेंधा नमक में बनाया जाता है, फिर व्रतिन इस दिन जो नमक वाला भोजन खाती हैं, फिर छठ खत्म करने के बाद ही नमक खाती हैं। फिर दूसरे दिन खरना पूजा होती है, जो महिलाएं व्रत रखती हैं, पूरे दिन उपवास के बाद, शाम में मिट्टी के चूल्हा बना कर, गुड़ की खीर और रोटी बनाती हैं, फिर उसे भी प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं।  तीसरे दिन को सबसे मुख्य दिन माना जाता है। इस दिन ही ठेकुआ, फल, नारियल और कई चीजों को सूप में रख कर, फिर भगवान सूर्य को सूर्यास्त होने के समय अर्घ्य दिया जाता है। फिर इस दिन पानी में ही गन्ने से कोसी तैयार की जाती है, लोक गीत गाए जाते हैं, इसके बाद, फिर चौथे दिन सुबह-सुबह सूर्योदय होते ही अर्घ्य दिया जाता है और फिर पूजा संपन्न हो जाती है। 

प्राकृतिक पर्व की खूबसूरती 

छठ पूजा की सबसे खास बात यही होती है कि इस पर्व में प्राकृतिक चीजों को विशेष रूप से अहमियत दी जाती है, जैसे इस पर्व में सूप और डलिया में सारे मौसमी फलों को रख कर अर्घ्य दिया जाता है। यह एक ऐसा पर्व भी है, जिसमें साफ-सफाई का भी खास महत्व होता है, क्योंकि नदी, तालाब को अच्छी तरह से भी साफ किया जाता है। ऐसे में इस पर्व में प्रकृति का भी आदर किया जाता है, यह साफ जाहिर होता है। 

पारिवारिक मिलन का मौका 

पूरे साल में छठ का पर्व एक ऐसा पर्व होता है, जब पूरा परिवार इसी कोशिश में होता है कि वह अपने परिवार का हिस्सा बने ही, ऐसे में पारिवारिक मूल्यों और जिम्मेदारियों को उठाने और निभाने का इससे अच्छा मौका और कुछ नहीं हो सकता है, यह पर्व दर्शाता है कि हम आज भी अपने परिवार से जुड़े हुए हैं। अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं, इस पर्व में जितने काम होते हैं और जिस तरह से सभी जिम्मेदारी उठा कर इसे पूरी श्रद्धा से करते हैं, इससे पारिवारिक प्रेम बढ़ता ही है। 

लोक संस्कृति का सम्मान 

लोक संस्कृति की बात की जाए तो इस पर्व में खूब लोक गीत गाये जाते हैं, कोसी भरते हुए भी मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल होता है, अल्पना बनाई जाती है। इस दौरान,कई गीत गाये जाते हैं, जिसमें किसी यंत्र की जरूरत नहीं होती है, फिर भी यह बेहद मधुर और संगीतमय लगता है। लोक गीत गाते हुए जब महिलाओं का हुजूम नदी या तालाब की ओर निकलता है, तो वह दृश्य अद्भुत होता है। महिलाएं, एक दूसरे की मांग में सिंदूर लगा कर भी लोक परंपरा को आगे बढ़ाती हैं। 

सामाजिक सरोकार का प्रतीक 

छठ पर्व में आस-पास के पड़ोसी, दोस्त और समाज के वे लोग भी जो एक दूसरे को नहीं जानते हैं, एक दूसरे का साथ देने के लिए तत्पर रहते हैं, सभी मिल कर सड़क, नदी नालों की सफाई करते हैं, तो महिलाएं मोहल्ले में एक दूसरे के घर जाकर छठ का प्रसाद तैयार करवाती हैं, कोसी भरते हुए, अल्पना बनाती हैं और सभी मिल कर खूब गाती हैं, जिनके घर यह पूजा नहीं होती है, उनके घर विशेष रूप से प्रसाद पहुंचाया जाता है, इससे साफ जाहिर होता है कि यह समाज में सिर्फ प्यार ही फैलाता है, लोग धर्म को भूल कर, निरपेक्ष होकर इस व्रत को पूरा करने में व्रतिन की मदद करते हैं। यही नहीं, यह पर्व यह भी दर्शाता है कि शेयर करना कितना नेक काम है, घाट पर पूजा समाप्ति के वहां जो भी मौजूद लोग होते हैं, फिर वह घर परिवार के हो या हो न हो, उन्हें प्रसाद जरूर वितरित किया जाता है।

 

 

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